भारत-म्यांमार संबंध एक मोड़ पर
राष्ट्रीय हितों की पुनर्परिभाषा: मूल्यों के माध्यम से रणनीति
✍️ Suryavanshi IAS इनसाइट डेस्क
📅 5 अगस्त 2025
📘 GS पेपर 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध) | GS पेपर 3 (आंतरिक सुरक्षा) | निबंध
🔔 भूमिका:
12 मई 2024 — म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र से एक चित्र सामने आया जिसमें बमबारी के बाद एक स्कूल की इमारत के सामने बच्चों के बैग पड़े थे। यह दृश्य सिर्फ एक त्रासदी नहीं, बल्कि भारत के लिए एक प्रश्नचिन्ह है —
क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने पड़ोसी की तानाशाही में चुपचाप भागीदार बना रह सकता है?
⚖️ समस्या: रणनीतिक यथार्थ बनाम नैतिक शून्यता
भारत की म्यांमार नीति अब तक रणनीतिक हितों से संचालित रही है —
सीमा सुरक्षा, उग्रवाद विरोधी कार्रवाई, और चीन को संतुलित करना।
पर क्या यह नीति म्यांमार की जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप है?
📉 वास्तविकता:
5000+ नागरिकों की हत्या
25 लाख से अधिक लोग विस्थापित
पूर्ण गृहयुद्ध और लोकतंत्र का पतन
और फिर भी भारत का झुकाव उस सैन्य तानाशाही की ओर है जिसने इन हालातों को जन्म दिया।
🇮🇳 भारत की भूमिका: क्या हम नेतृत्व कर सकते हैं?
भारत “विश्वगुरु” बनने की आकांक्षा रखता है। लेकिन क्या यह बिना नैतिक नेतृत्व के संभव है?
🇮🇳 रणनीति और आदर्श विरोधी नहीं हैं — बल्कि जब मिलते हैं, तभी स्थायी नेतृत्व बनता है।
🛤️ नीति में बदलाव की आवश्यकता: 4-स्तरीय मूल्यों पर आधारित म्यांमार नीति
🟩 1. लोकतंत्र को रणनीतिक पूंजी बनाना
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म्यांमार की नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) और नागरिक समाज से संवाद बढ़ाया जाए।
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भारत के अनुभवों को साझा किया जाए:
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संघीय व्यवस्था,
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राज्य-केंद्र सहयोग,
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संवैधानिक लोकतंत्र।
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✅ चीन हथियार बेच सकता है, पर भारत लोकतंत्र का विचार बेच सकता है।
🟥 2. सैन्य सहायता तुरंत बंद हो
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भारत के सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा:
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संचार यंत्र,
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नौसेना डीजल,
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नेविगेशन उपकरण की आपूर्ति की गई है।
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ये आपूर्ति नागरिकों पर हमलों में प्रयुक्त हो रही हैं।
❗ भारत को ऐसे तानाशाहों को हथियार नहीं, सन्देश देने चाहिए।
🟦 3. मानवीय गलियारों की स्थापना
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सागाइंग, चिन और राखाइन क्षेत्रों में राहत पहुंचाई जाए।
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Free Movement Regime (FMR) को फिर से शुरू किया जाए।
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मिज़ोरम जैसे सीमांत राज्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद ली जाए।
📌 राहत जुंटा के हाथों में नहीं, नागरिक समूहों के माध्यम से दी जाए।
🟨 4. शरणार्थियों को संरक्षण मिले, सजा नहीं
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मणिपुर और असम में म्यांमार के शरणार्थियों की गिरफ्तारी और निर्वासन बंद किया जाए।
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उन्हें “अवैध घुसपैठिए” नहीं, बल्कि मानवता के आधार पर शरणार्थी माना जाए।
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भारत भले ही 1951 शरणार्थी संधि का पक्षकार नहीं है, पर “Non-Refoulement” जैसे अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत लागू होते हैं।
⚖️ हमारी संविधानिक आत्मा करुणा की मांग करती है।
🏁 निष्कर्ष: समय है “विश्वबन्धु” बनने का
भारत स्वयं को “विश्वबंधु” कहता है — तो अब उस भूमिका को निभाने का समय है।
🌍 म्यांमार के लोगों के साथ खड़ा होना, भारत की आत्मा को फिर से परिभाषित करना है।
🧠 निबंध विषय:
"विदेश नीति किसी राष्ट्र की नैतिक कल्पना का दर्पण होती है।"
— म्यांमार संदर्भ में चर्चा करें।
📝 GS-2 मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न:
Q. भारत की म्यांमार नीति पारंपरिक रूप से रणनीतिक हितों पर केंद्रित रही है। वर्तमान मानवीय संकट की रोशनी में, मूल्यों पर आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता का मूल्यांकन करें। एक स्पष्ट खाका प्रस्तुत करें।