Blog Archive

Monday, July 28, 2025

क्या सभी वैद्य "डॉक्टर" कहलाने योग्य हैं?

 

क्या सभी वैद्य "डॉक्टर" कहलाने योग्य हैं?

✍️ सूर्यवंशी IAS द्वारा | जीएस पेपर II एवं III | शासन • सार्वजनिक स्वास्थ्य • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


🔍 संदर्भ

हाल ही में एक हेपेटोलॉजिस्ट और एक भारतीय शतरंज ग्रैंडमास्टर के बीच X (पूर्व में ट्विटर) पर बहस छिड़ गई कि क्या पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों (जैसे आयुर्वेद और यूनानी) के चिकित्सक खुद को “डॉक्टर” कह सकते हैं।
यह बहस केवल उपाधि (Title) की नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार, चिकित्सा की सीमाएँ, और जनस्वास्थ्य के लिए इसके परिणामों की है।


📚 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

🔸 भोर समिति (1946)

  • आधुनिक विज्ञान आधारित चिकित्सा का समर्थन किया।

  • परंपरागत पद्धतियों को प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली से बाहर करने की सिफारिश की।

🔸 भारतीय चिकित्सा प्रणाली समिति (1948)

  • आयुर्वेद को वेदों से जोड़ा, और इसके पतन का कारण “विदेशी आक्रमण” बताया।

  • बहस को धार्मिक और सांस्कृतिक रंग दिया गया।

🔸 भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम (1970)

  • इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित किया गया, जिससे आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी पद्धतियों को कानूनी मान्यता मिली।

🔸 भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग अधिनियम (2020)

  • 1970 के अधिनियम का आधुनिकीकरण, शिक्षण एवं नियमन के लिए नया ढांचा।


⚖️ कानूनी आयाम

🔹 औषधि एवं प्रसाधन नियम, 1945 की धारा 2(ee)

  • "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" की परिभाषा देता है।

  • राज्य सरकारों को यह निर्णय लेने की शक्ति देता है कि किसे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का अभ्यास करने की अनुमति है।

🔹 डॉ. मुख्तियार चंद बनाम पंजाब राज्य (1998)

  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाइयाँ नहीं लिख सकते

  • आधुनिक दवाओं का प्रयोग आधुनिक प्रणाली के अभ्यास से अविभाज्य है।

🔹 राज्यों की अवहेलना

  • कई राज्य अभी भी आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एंटीबायोटिक्स और अन्य आधुनिक दवाइयाँ लिखने की अनुमति देते हैं।

  • IMA (Indian Medical Association) ने कई मामलों में कोर्ट में जीत दर्ज की।


🔬 मुख्य मुद्दे

🔸 क्या आयुर्वेदिक चिकित्सकों को “डॉक्टर” कहा जा सकता है?

  • वे भले ही पंजीकृत हों, लेकिन उनकी प्रणाली का आधार अलग है, जो आधुनिक विज्ञान से मेल नहीं खाता।

🔸 क्या उन्हें एलोपैथिक दवाइयाँ या सर्जरी की अनुमति मिलनी चाहिए?

  • 2020 की अधिसूचना ने 58 तरह की सर्जरी की अनुमति दी, जिसमें गॉल ब्लैडर और एपेंडिक्स हटाना भी शामिल है।

  • यह मामला अब न्यायालय में लंबित है।

🔸 आम जनता की उलझन

  • कई मरीज BAMS डिग्रीधारी को MBBS डॉक्टर समझ लेते हैं, जिससे उपभोक्ता फोरम में धोखा देने के मुकदमे होते हैं।


⚠️ सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • BAMS चिकित्सकों को कम वेतन में निजी अस्पतालों में नियुक्त किया जा रहा है।

  • इससे प्रशिक्षण की गुणवत्ता और रोगी की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह है।

  • आयुष्मान भारत योजना में AYUSH चिकित्सा पद्धति को शामिल करने से करदाता का पैसा वैज्ञानिक प्रमाण के बिना खर्च होगा।

  • अब तक ₹20,000 करोड़ खर्च हुए हैं परंतु कोई ठोस वैज्ञानिक खोज नहीं दिखी है।


🏛️ राजनीतिक दृष्टिकोण

🔹 “हिंदू गौरव” की भावना

  • आयुर्वेद को प्राचीन भारत की श्रेष्ठता का प्रतीक बताया जा रहा है।

  • पुष्पक विमान, कौरवों को टेस्ट ट्यूब बेबी बताना, आदि बातें विज्ञान को नजरअंदाज करती हैं।

🔹 सर्वदलीय समर्थन

  • 2024 के कांग्रेस घोषणापत्र में भी सभी पद्धतियों को समर्थन देने की बात की गई थी।

  • इस विषय पर वैज्ञानिक सोच नहीं, वोट बैंक प्रमुख बन गई है।


🧠 प्रारंभिक परीक्षा के लिए तथ्य

✔️ भोर समिति – 1946
✔️ मुख्तियार चंद केस – 1998
✔️ आयुष प्रणाली – आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी
✔️ राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम – 2020
✔️ धारा 2(ee) – "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" की परिभाषा
✔️ आयुष्मान भारत योजना में AYUSH का समावेश?


✍️ मुख्य परीक्षा का प्रश्न (GS Paper II)

प्रश्न: पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करना कई कानूनी एवं नैतिक जटिलताओं को जन्म देता है। हालिया विवादों के आलोक में चर्चा कीजिए।
उत्तर लेखन दृष्टिकोण:

  • भूमिका: हाल का विवाद और सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता

  • मुख्य बिंदु:

    • इतिहास और कानूनी पहलू

    • नियम 2(ee) और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

    • राजनीतिक और सांस्कृतिक दबाव

    • रोगियों की सुरक्षा, गुणवत्ता का मुद्दा

  • निष्कर्ष: वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर संतुलित नीति की आवश्यकता


🎯 निष्कर्ष

भारत की विविधता में परंपरागत ज्ञान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इसे आंधी श्रद्धा या राजनीतिक एजेंडे का साधन बनाना जनस्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। UPSC अभ्यर्थियों को इस विषय को बहुआयामी दृष्टिकोण से समझना चाहिए।


📍 पता: 638/20 (K-344), राहुल विहार, तुलसी कार केयर के पास, लखनऊ
📞 संपर्क: 6306446114
🌐 वेबसाइट: suryavanshiias.blogspot.com

📘 तथ्य से सिद्धांत तक — हर विषय की गहराई में जाएँ।
सूर्यवंशी IAS

No comments:

Post a Comment

विलंबित न्याय, अन्याय के समान है: भारत की न्यायिक लंबित मामलों की गहराई से पड़ताल

  विलंबित न्याय, अन्याय के समान है : भारत की न्यायिक लंबित मामलों की गहराई से पड़ताल ✍️ सूर्यवंशी IAS द्वारा | जीएस पेपर II • शासन • राजनी...