डायरिया: एक जलजनित रोग नहीं, बल्कि एक महिला सशक्तिकरण, शासन और जलवायु से जुड़ी चुनौती
"डायरिया केवल जल का मुद्दा नहीं है, यह महिला सशक्तिकरण, शासन और अब जलवायु का भी मुद्दा है।"
यह वाक्य स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि डायरिया अब केवल एक सामान्य रोग नहीं रहा, बल्कि यह बहुआयामी विकासात्मक संकट बन चुका है।
ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन (Environmental Research, 2025) में यह पाया गया कि दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में बदलते जलवायु पैटर्न के कारण बच्चों में डायरिया का खतरा बढ़ रहा है — विशेष रूप से भारत में, जहां यह अब भी पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का प्रमुख कारण है।
🔍 अध्ययन की प्रमुख बातें
-
वार्षिक तापमान सीमा 30–40°C होने पर डायरिया का खतरा 39% तक बढ़ गया।
-
सबसे अधिक वर्षा वाले महीने में 600 मिमी से कम वर्षा होने पर खतरा 30% बढ़ गया।
-
जिन माताओं की शिक्षा 8 वर्षों से कम थी, उनके बच्चों में डायरिया का खतरा 18% अधिक था।
-
जिन घरों में 6 से अधिक सदस्य थे, वहाँ खतरा 9% अधिक पाया गया।
🌐 डायरिया: बहुआयामी दृष्टिकोण
1️⃣ जल एवं स्वच्छता का संकट
डायरिया से होने वाली 88% मौतें अशुद्ध जल और अस्वच्छता के कारण होती हैं। स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसे प्रयासों के बावजूद कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है।
2️⃣ महिला सशक्तिकरण की भूमिका
शोध के अनुसार, अशिक्षित या अल्प-शिक्षित माताओं के बच्चों में डायरिया की संभावना कहीं अधिक होती है। शिक्षित महिलाएं जल्दी लक्षण पहचानती हैं, स्वच्छता रखती हैं और उपचार प्राप्त करती हैं।
3️⃣ शासन और बुनियादी ढाँचा
शहरी झुग्गियों और ग्रामीण क्षेत्रों में जल निकासी, स्वच्छता एवं प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण रोग फैलता है। स्थानीय निकायों, पंचायतों एवं स्वास्थ्य विभागों के समन्वय से इसमें सुधार लाया जा सकता है।
4️⃣ जलवायु परिवर्तन: एक नया संकट
बढ़ता तापमान, सूखा, और अनियमित वर्षा जल स्रोतों को दूषित करती है और रोगजनकों (pathogens) के पनपने के लिए अनुकूल माहौल बनाती है। डायरिया अब एक जलवायु-संवेदनशील बीमारी बन चुका है।
📘 नीतिगत सुझाव – प्रशासनिक अधिकारियों के लिए
✅ मातृ शिक्षा को स्थानीय जलवायु-स्वास्थ्य योजना में शामिल किया जाए।
✅ रोटावायरस वैक्सीनेशन को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाया जाए।
✅ जल एवं स्वच्छता ढांचे को जलवायु के अनुकूल बनाया जाए।
✅ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जागरूकता अभियान को तेज किया जाए।
✅ विभागीय समन्वय (स्वास्थ्य, पर्यावरण, ग्रामीण विकास) को प्राथमिकता दी जाए।
🧾 UPSC के लिए प्रासंगिकता
GS Paper II:
-
महिला शिक्षा, बाल स्वास्थ्य
-
कल्याणकारी योजनाएँ (POSHAN, SBM, NHM)
-
शासन की प्रभावशीलता
GS Paper III:
-
जलवायु परिवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य
-
आपदा प्रबंधन एवं बुनियादी ढाँचा
-
सतत विकास लक्ष्य (SDG 3, SDG 6)
📚 पूर्व वर्षों के UPSC प्रश्नों से संबंध
GS II – 2022
"भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में कई चुनौतियाँ हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाने में समुदाय की भागीदारी की भूमिका स्पष्ट कीजिए।"
🔁 उत्तर में मातृ शिक्षा, जल और स्वच्छता का ज़िक्र करें।
GS III – 2021
"जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया एवं उसके प्रभावों की विवेचना कीजिए।"
🔁 डायरिया एक जलवायु-संवेदनशील बीमारी है — इसका उल्लेख करें।
Essay Paper – 2020
"प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण है।"
🔁 डायरिया के माध्यम से दोनों पहलुओं को जोड़ें।
🔚 निष्कर्ष
भारत जब विकसित राष्ट्र 2047 की ओर अग्रसर है, तो उसे यह समझना होगा कि डायरिया जैसी बीमारियों से लड़ाई सिर्फ दवाओं से नहीं, बल्कि नीति, शिक्षा, जलवायु रणनीति और सुशासन से लड़ी जाती है।
डायरिया अब केवल एक रोग नहीं, बल्कि हमारी नीतियों की परख बन चुका है।
📬 "सिविल सेवा ज्ञान बुलेटिन - जे.के. सूर्यवंशी द्वारा" हर अंक में प्रशासनिक दृष्टिकोण से नीति, समाज और पर्यावरण के जुड़ाव को समझाइए।
सिविल सेवा ज्ञान बुलेटिन
✍🏻 लेखक: जे. के. सूर्यवंशीअंक: अगस्त 2025 | विषय: स्वास्थ्य, जलवायु और सुशासन
No comments:
Post a Comment