अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, इतिहासबोध और न्यायिक प्रक्रिया: एक लोकतांत्रिक संतुलन | Suryavanshi IAS
🔹 भूमिका:
भारत का संविधान नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) की गारंटी देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। जब यह स्वतंत्रता ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर की गई टिप्पणियों, राजनीतिक मतभेदों, या धार्मिक/सांस्कृतिक संवेदनाओं से टकराती है, तब न्यायिक प्रक्रिया इसका संतुलन तय करती है।
🔸 1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संविधान का मूल अधिकार
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अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, प्रेस और बोलने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
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परंतु यह न्यायसंगत प्रतिबंधों (Article 19(2)) के अधीन है:
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राष्ट्रीय सुरक्षा
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शिष्टाचार और नैतिकता
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मानहानि
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अदालत की अवमानना
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विद्वेष फैलाना
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👉 उदाहरण:
राहुल गांधी द्वारा सावरकर पर की गई टिप्पणी — क्या वह वैचारिक आलोचना है या मानहानि? इस पर न्यायालय निर्णय करेगा।
🔸 2. इतिहासबोध (Historical Consciousness): स्मृति और विवाद
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भारत का इतिहास विविध विचारधाराओं से बना है – गांधी, नेहरू, सुभाष, अंबेडकर, पटेल, सावरकर आदि सभी की भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं।
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इतिहासबोध का मतलब है – इतिहास को तथ्यों, संदर्भों और समाज पर उसके प्रभाव के साथ समझना।
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जब राजनेता या व्यक्ति ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर टिप्पणी करते हैं, तो उनके कथन राजनीतिक विमर्श, वैचारिक बहस या व्यक्तिगत आक्षेप बन सकते हैं।
👉 चुनौती:
इतिहास को कैसे देखें — तथ्य आधारित विवेचन या भावनात्मक गौरव?
सावरकर पर मतभेद इसी द्वंद्व का उदाहरण हैं।
🔸 3. न्यायिक प्रक्रिया: संतुलन का रक्षक
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भारत में कोर्ट तय करता है कि किसी कथन की प्रकृति स्वतंत्र अभिव्यक्ति की है या अपराधिक मानहानि की।
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न्यायालय ही यह मूल्यांकन करता है कि क्या कोई टिप्पणी समाज की शांति को भंग कर सकती है।
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न्यायिक प्रक्रिया में:
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अभियुक्त को ‘निर्दोष माना जाता है जब तक दोषी सिद्ध न हो’
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प्रक्रिया में निष्पक्ष सुनवाई, जमानत का अधिकार, और अपील की व्यवस्था शामिल है।
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👉 राहुल गांधी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई, और बाद में ₹15,000 के मुचलके पर जमानत — यह दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रिया सुलभ और विवेकपूर्ण है।
🔹 निष्कर्ष:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में:
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सम्मान देना आवश्यक है,
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इतिहासबोध को तर्क, संदर्भ और साक्ष्य के साथ समझना चाहिए,
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और न्यायिक प्रक्रिया को निष्पक्ष और स्वतंत्र रहने देना चाहिए।
✅ यही तीनों मिलकर भारतीय लोकतंत्र को सशक्त, विवेकशील और जिम्मेदार बनाते हैं।
📚 UPSC उत्तरलेखन संकेत:
❓ “लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के टकराव से उत्पन्न विवादों में न्यायपालिका की क्या भूमिका होनी चाहिए? विचार करें।”
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