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Friday, July 25, 2025

"मैंग्रोव: जलवायु परिवर्तन से रक्षा की हरित दीवार"

 

"मैंग्रोव: जलवायु परिवर्तन से रक्षा की हरित दीवार"

✍️ Suryavanshi IAS द्वारा
विषय: पर्यावरणीय संरक्षण, जलवायु अनुकूलन, समुद्री पारिस्थितिकी, और भारत में स्थायी विकास

🔰 भूमिका: समुद्र के किनारे उगती हरित रक्षा पंक्ति

कभी दलदली और बेकार ज़मीन समझे जाने वाले मैंग्रोव आज पर्यावरणीय संरक्षण, आपदा प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वे समुद्र से सटे इलाकों को न केवल चक्रवातों और सुनामी से बचाते हैं, बल्कि नीली कार्बन (Blue Carbon) के रूप में जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी योगदान देते हैं।

भारत में मैंग्रोव की सुरक्षा और वैज्ञानिक प्रबंधन में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की भूमिका क्रांतिकारी रही है। उन्होंने इस पारिस्थितिकी तंत्र को एक नवीन वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से देखा।


📜 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: पहचान की शुरुआत

1980 के दशक तक मैंग्रोव का महत्व केवल उन्हीं स्थानीय समुदायों तक सीमित था जो अपनी आजीविका के लिए मत्स्य संसाधनों पर निर्भर थे। 1988 में UNDP और UNESCO द्वारा एक क्षेत्रीय परियोजना प्रारंभ की गई, लेकिन निर्णायक मोड़ तब आया जब 1989 में टोक्यो में "Climate Change and Human Responses" सम्मेलन में डॉ. स्वामीनाथन ने यह स्पष्ट किया कि:

“बढ़ते समुद्र-स्तर और चक्रवातों की तीव्रता के कारण तटीय क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन, रोजगार और जल स्रोत संकट में हैं — और इसका उत्तर है ‘मैंग्रोव का सतत प्रबंधन’।”


🌍 वैश्विक मंच पर पहल: ISME और विश्व मैंग्रोव चार्टर

  • 1990 में Okinawa (जापान) में International Society for Mangrove Ecosystems (ISME) की स्थापना

  • डॉ. स्वामीनाथन इसके संस्थापक अध्यक्ष बने (1990–1993)

  • 1992 Rio Earth Summit में उन्होंने "मैंग्रोव चार्टर" को World Charter for Nature का हिस्सा बनवाया

ISME की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • विश्व मैंग्रोव एटलस और पुनर्स्थापन मैनुअल प्रकाशित

  • ग्लोबल मैंग्रोव मूल्यांकन और संरक्षण रिपोर्ट

  • विश्व स्तर पर "मैंग्रोव = सुरक्षा + जैवविविधता + जीवन" की अवधारणा को स्थापित किया


🧪 वैज्ञानिक नवाचार: GLOMIS और जीन-आधारित अनुसंधान

  • GLOMIS (Global Mangrove Database and Information System) की स्थापना — एक searchable डाटाबेस जिसमें विशेषज्ञ, प्रजातियाँ और आनुवंशिक संसाधन शामिल

  • मैंग्रोव जीन को खारे पानी-सहनशील फसलों (जैसे चावल) में स्थानांतरित करने पर शोध

  • 1992 में 9 देशों के 23 मैंग्रोव स्थलों की वैज्ञानिक रूप से पहचान — आज ये सभी संरक्षित क्षेत्र हैं


🇮🇳 भारत में मैंग्रोव नीति की क्रांति: MSSRF की भूमिका

🔎 समस्या:

  • 1783 से ब्रिटिश काल और बाद में स्वतंत्र भारत में मैंग्रोव की कटाई और जमीन की पुनःप्राप्ति होती रही

  • 1980 तक “clear-felling system” से बड़े पैमाने पर मैंग्रोव नष्ट हुए

  • स्थानीय समुदायों को दोषी ठहराया गया जबकि असली कारण जल-परिस्थितिकी असंतुलन था

🔬 समाधान:

  • M.S. Swaminathan Research Foundation (MSSRF) ने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बंगाल में "फिशबोन कैनाल पद्धति" के माध्यम से पुनर्स्थापन किया

  • Participatory Research के आधार पर स्थानीय लोगों को शामिल कर "Joint Mangrove Management Programme" की शुरुआत की गई

2000 में भारत सरकार ने इसे पूरे देश में लागू करने की सिफारिश की।


🌀 प्राकृतिक आपदाओं में मैंग्रोव की भूमिका

  • 1999 उड़ीसा सुपर साइक्लोन

  • 2004 हिंद महासागर सुनामी
    इन दोनों में मैंग्रोव पट्टियों ने जान-माल की रक्षा की, जिससे सरकारों और समाज का ध्यान मैंग्रोव पुनर्स्थापन की ओर गया।


📈 हाल की प्रगति: रिपोर्ट कार्ड

🔍 ISFR 2023 (India State of Forest Report) के अनुसार:

  • भारत में कुल मैंग्रोव क्षेत्रफल: 4,991.68 किमी²

  • यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है

  • ISFR 2019 की तुलना में 16.68 किमी² की वृद्धि हुई

➡️ यह स्पष्ट करता है कि भारत में संरक्षण प्रयासों ने जमीनी परिणाम दिए हैं।


🧭 UPSC दृष्टिकोण: कैसे यह उपयोगी है?

विषयप्रासंगिकता
GS Paper IIIपर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन, जैवविविधता
GS Paper IIअंतरराष्ट्रीय सहयोग, नीति निर्माण
Essayजलवायु परिवर्तन, सतत विकास, पारिस्थितिकी संतुलन
Prelimsपर्यावरण, वर्तमान घटनाएँ, रिपोर्ट्स (ISFR, GLOMIS)

📝 उत्तर लेखन और निबंध अभ्यास के लिए प्रश्न:

  1. “मैंग्रोव पारिस्थितिकी केवल पर्यावरणीय संपदा नहीं, बल्कि भारत की तटीय सुरक्षा की रीढ़ हैं।” स्पष्ट करें।

  2. “डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में भारत की मैंग्रोव नीति कैसे बदली?” उदाहरण सहित उत्तर दें।

  3. GLOMIS और ISME जैसे वैश्विक संस्थानों की भूमिका को समझाते हुए, वैश्विक मैंग्रोव संरक्षण प्रयासों का मूल्यांकन करें।


🔚 निष्कर्ष: समुद्र की हरियाली, राष्ट्र की सुरक्षा

मैंग्रोव अब दलदली जमीन नहीं, बल्कि जीवित दीवारें हैं जो तटों, जलवायु और आजीविका की रक्षा करती हैं।
डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने इसे केवल वैज्ञानिक मुद्दा नहीं, बल्कि नीति, नैतिकता और न्याय का विषय बनाया।
भारत और विश्व, दोनों को उनका यह योगदान हमेशा मार्गदर्शन देता रहेगा।


📘 Suryavanshi IAS द्वारा पर्यावरणीय श्रृंखला का यह भाग — UPSC की तैयारी के लिए अत्यंत उपयोगी है।

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