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Friday, July 25, 2025

“भारत की डिजिटल संप्रभुता बनाम वैश्वीकरण” (India’s Digital Sovereignty vs Globalization)

 “भारत की डिजिटल संप्रभुता बनाम वैश्वीकरण”

(India’s Digital Sovereignty vs Globalization)


✍️ प्रस्तावना (Introduction)

21वीं सदी में डिजिटल अर्थव्यवस्था वैश्विक शक्ति-संतुलन की धुरी बन चुकी है। डेटा को अब "नई संपत्ति" या "नया तेल" कहा जाने लगा है। ऐसे समय में, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के सामने चुनौती है — अपनी डिजिटल संप्रभुता को बनाए रखते हुए वैश्विक डिजिटल व्यापार का हिस्सा बनना।

जहां एक ओर वैश्वीकरण मुक्त डेटा प्रवाह, ओपन इंटरनेट, और सीमा-पार डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देता है, वहीं दूसरी ओर डिजिटल संप्रभुता उस डेटा पर नियंत्रण की मांग करती है जो देश के नागरिकों से उत्पन्न होता है।


🌐 वैश्वीकरण: डिजिटल व्यापार का चेहरा

वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क:

  1. मुक्त डेटा प्रवाह से निवेश को बढ़ावा:
    विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार करने में सुविधा होती है यदि डेटा को सीमा-पार स्थानांतरित करने की अनुमति हो।

  2. टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और नवाचार:
    सीमा-पार सहयोग से भारत को नई तकनीकें प्राप्त होती हैं।

  3. स्टार्टअप और ई-कॉमर्स को बढ़ावा:
    वैश्विक बाजार में भारतीय स्टार्टअप्स को अवसर मिलते हैं।

  4. बाह्य प्रतिबंधों की समाप्ति:
    वैश्विक डिजिटल व्यापार समझौते (जैसे WTO e-commerce negotiations) भारत को टैरिफ और डेटा बाधाओं से मुक्त कर सकते हैं।


🇮🇳 डिजिटल संप्रभुता: भारत की आवश्यकता

डिजिटल संप्रभुता के पक्ष में तर्क:

  1. डेटा पर नियंत्रण = राष्ट्रीय सुरक्षा:
    महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे रक्षा, बैंकिंग, स्वास्थ्य का डेटा विदेशों में होना खतरा हो सकता है।

  2. निजता संरक्षण का सवाल:
    भारत में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम, 2023 जैसे कानून नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करते हैं।

  3. स्थानीय रोजगार और इनोवेशन को बढ़ावा:
    डेटा स्थानीयकरण से भारत में डेटा सेंटर, क्लाउड कंपनियाँ, और डिजिटल अवसंरचना विकसित होती है।

  4. सांस्कृतिक और वैधानिक विविधता:
    भारत की सांस्कृतिक संवेदनशीलता और कानूनी ढांचा पश्चिमी देशों से भिन्न है।


⚖️ संघर्ष के उदाहरण

क्षेत्रवैश्वीकरण दृष्टिकोणभारत का दृष्टिकोण
डेटा स्थानीयकरणविरोधRBI, MeitY द्वारा समर्थन
सोर्स कोड खुलासाआवश्यक (कुछ देश)भारत ने छूट दी
फ्री फ्लो ऑफ डेटासमर्थनआंशिक प्रतिबद्धता (CETA में भी)
डेटा गोपनीयता कानूनGDPR आधारितभारत का अपना स्वतंत्र कानून

📑 केस स्टडी: भारत–यूके CETA (डिजिटल व्यापार अध्याय)

  • स्रोत कोड के खुलासे से छूट दी गई – डिजिटल संप्रभुता को बनाए रखते हुए विदेशी निवेशकों को राहत।

  • डेटा फ्लो पर कोई अनिवार्यता नहीं – RBI को अपनी शर्तों पर डेटा स्थानीयकरण लागू करने की छूट।

  • ई-कॉन्ट्रैक्ट्स और उपभोक्ता संरक्षण को वैश्विक मान्यता – वैश्वीकरण के पक्ष को मान्यता।

➡️ यह समझौता इस संतुलन का उदाहरण है कि कैसे भारत वैश्विक व्यापार का हिस्सा बनते हुए भी अपने डिजिटल हितों की रक्षा कर सकता है।


🧠 समाधान व सुझाव

  1. "डेटा का वर्गीकरण" नीति:
    महत्वपूर्ण और गैर-महत्वपूर्ण डेटा को अलग मानकर लचीली नीतियाँ बनाई जाएँ।

  2. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    भारत को G20, WTO जैसे मंचों पर डिजिटल सार्वजनिक वस्तु (Digital Public Goods) की अवधारणा को बढ़ावा देना चाहिए।

  3. राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस ढाँचा:
    नागरिकों की सहमति आधारित डेटा उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है।

  4. बौद्धिक संपदा सुरक्षा:
    भारत को डिजिटल उत्पादों और सेवाओं में भी IPR संरक्षण मजबूत करना होगा।


✅ निष्कर्ष (Conclusion)

डिजिटल संप्रभुता और वैश्वीकरण कोई परस्पर विरोधी विचार नहीं हैं, बल्कि एक संतुलन की मांग करते हैं। भारत को डिजिटल आत्मनिर्भरता को बढ़ाते हुए वैश्विक नवाचारों से जुड़ना होगा।

जैसा कि भारत–यूके CETA डिजिटल अध्याय दिखाता है —
👉 "हम खुली अर्थव्यवस्था चाहते हैं, पर अपनी शर्तों पर!"

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Suryavanshi IAS