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Monday, August 18, 2025

भारत की चुनावी स्वतंत्रता पर संकट: न्यायिक, विधायी और लोकतांत्रिक चुनौतियाँ

 

भारत की चुनावी स्वतंत्रता पर संकट: न्यायिक, विधायी और लोकतांत्रिक चुनौतियाँ

(यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए सूर्यवंशी आईएएस का विश्लेषण)

मूल समस्या: चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में

विपक्षी दलों द्वारा चुनावी रोल में विसंगतियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट न जाने की अनिच्छा एक गहरी संरचनात्मक समस्या को दर्शाती है - चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में संस्थागत स्वतंत्रता का क्षरण

प्रमुख घटनाक्रम:

  1. 2023 का कानून बनाम अनूप बरनवाल फैसला (2023):

    • सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने (अनूप बरनवाल मामले में) चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तटस्थ चयन समिति (PM + LoP + CJI) का आदेश दिया था।

    • 2023 के कानून ने CJI की जगह एक केंद्रीय मंत्री को शामिल कर कार्यपालिका को चुनाव आयोग पर अनियंत्रित नियंत्रण दे दिया।

    • मार्च 2024 में SC द्वारा कानून पर रोक लगाने से इनकार (जया ठाकुर मामले) ने वर्तमान ECI को 2024 के चुनावों की देखरेख करने दिया।

  2. परिणाम:

    • एक "आज्ञाकारी चुनाव आयोग" (जैसा कि अनूप बरनवाल में चेतावनी दी गई थी) से चुनावी हेराफेरी का खतरा।

    • वैश्विक उदाहरण: वेनेजुएला, इक्वाडोर जैसे देशों में अदालतों ने संस्थानों पर कब्जे को वैधता देकर तानाशाही को बढ़ावा दिया (लैंडौ और डिक्सन, 2020)।


विपक्ष की अनिच्छा क्यों उचित है?

  1. कानूनी निरर्थकता:

    • SC का "कानून की वैधता का अनुमान" वाला रुख (मार्च 2024) 2023 के कानून को चुनौती देना एक कठिन लड़ाई बना देता है।

    • रोक न लगने का मतलब: 2024 के चुनावों के लिए कोई तटस्थ ECI नहीं।

  2. राजनीतिक वास्तविकता:

    • ECI नियुक्तियों पर कार्यपालिका का वर्चस्व चुनावी मैदान को झुकाता है (जैसा कि वैश्विक अधिनायकवादी शासनों में देखा गया)।

    • विपक्ष के पास जवाबदेही तय करने का संस्थागत अधिकार नहीं


तुलनात्मक संवैधानिक विश्लेषण

पहलूभारतदक्षिण अफ्रीका (अध्याय 9 संस्थान)
ECI नियुक्तिकार्यपालिका-नियंत्रित (2023 कानून)संवैधानिक रूप से संरक्षित स्वतंत्रता
न्यायिक भूमिकाSC तटस्थता लागू करने में विफलअदालतें संस्थागत स्वायत्तता बनाए रखती हैं
लोकतंत्र सुरक्षाकमजोर (2023 कानून के बाद)मजबूत (चुनाव आयोग = चौथा स्तंभ)

मुख्य संदेश: भारत में "चौथे स्तंभ" (दक्षिण अफ्रीका के अध्याय 9 संस्थानों जैसे स्वतंत्र निकायों) की कमी लोकतंत्र को कमजोर बनाती है।


चुनावी अखंडता बहाल करने के उपाय

  1. कानूनी:

    • 2023 के कानून को रद्द कर अनूप बरनवाल की CJI-अध्यक्षित समिति को बहाल करना।

    • न्यायिक सक्रियता: SC को "कानून की वैधता का अनुमान" वाले रुख की समीक्षा करनी चाहिए (जैसा ADM जबलपुर के मामले में हुआ)।

  2. संस्थागत:

    • सत्य आयोग: एक नए तटस्थ ECI द्वारा चुनावी धांधली के आरोपों की जांच।

    • संविधान संशोधन: ECI को चौथे स्तंभ संस्थान के रूप में औपचारिक रूप देना (दक्षिण अफ्रीका मॉडल की तरह)।

  3. राजनीतिक:

    • विपक्षी एकता: ECI की स्वायत्तता के लिए सामूहिक दबाव।

    • जन जागरूकताकार्यपालिका-नियंत्रित चुनावों के खतरों को उजागर करना।


यूपीएससी प्रासंगिकता

जीएस पेपर-II (राजव्यवस्था एवं शासन):

  • चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति (अनूप बरनवाल बनाम 2023 कानून)।

  • तुलनात्मक संविधान (भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका के अध्याय 9 संस्थान)।

  • न्यायिक सक्रियता बनाम संयम (लोकतंत्र में SC की भूमिका)।

जीएस पेपर-IV (नैतिकता):

  • संस्थागत अखंडता बनाम कार्यपालिका का अतिक्रमण

  • नैतिक शासन: लोकतंत्र में तटस्थ अंपायरों की आवश्यकता।

निबंध/समसामयिकी:

  • "एक स्वतंत्र चुनाव आयोग - लोकतंत्र की आधारशिला"

  • "लोकतंत्र के रक्षक के रूप में न्यायपालिका: वादे और चुनौतियाँ"


निष्कर्ष: लोकतांत्रिक नवीनीकरण का आह्वान

भारत एक मोड़ पर खड़ा है:
✅ अनूप बरनवाल के सुधारों को बहाल कर निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करें।
✅ वैश्विक मॉडलों से सीखें (जैसे, दक्षिण अफ्रीका का चौथा स्तंभ)।
✅ संवैधानिक संस्थाओं पर कार्यपालिका कब्जे के खिलाफ जनमत जुटाएँ

विकल्प - एक समझौतावादी ECI - भारतीय लोकतंत्र को बहुसंख्यकवादी अधिनायकवाद में बदलने का जोखिम उठाता है।


(सूर्यवंशी आईएएस यूपीएससी अभ्यर्थियों को मार्गदर्शन देते हैं।)

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