भारत की चुनावी स्वतंत्रता पर संकट: न्यायिक, विधायी और लोकतांत्रिक चुनौतियाँ
(यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए सूर्यवंशी आईएएस का विश्लेषण)
मूल समस्या: चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में
विपक्षी दलों द्वारा चुनावी रोल में विसंगतियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट न जाने की अनिच्छा एक गहरी संरचनात्मक समस्या को दर्शाती है - चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में संस्थागत स्वतंत्रता का क्षरण।
प्रमुख घटनाक्रम:
2023 का कानून बनाम अनूप बरनवाल फैसला (2023):
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने (अनूप बरनवाल मामले में) चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तटस्थ चयन समिति (PM + LoP + CJI) का आदेश दिया था।
2023 के कानून ने CJI की जगह एक केंद्रीय मंत्री को शामिल कर कार्यपालिका को चुनाव आयोग पर अनियंत्रित नियंत्रण दे दिया।
मार्च 2024 में SC द्वारा कानून पर रोक लगाने से इनकार (जया ठाकुर मामले) ने वर्तमान ECI को 2024 के चुनावों की देखरेख करने दिया।
परिणाम:
एक "आज्ञाकारी चुनाव आयोग" (जैसा कि अनूप बरनवाल में चेतावनी दी गई थी) से चुनावी हेराफेरी का खतरा।
वैश्विक उदाहरण: वेनेजुएला, इक्वाडोर जैसे देशों में अदालतों ने संस्थानों पर कब्जे को वैधता देकर तानाशाही को बढ़ावा दिया (लैंडौ और डिक्सन, 2020)।
विपक्ष की अनिच्छा क्यों उचित है?
कानूनी निरर्थकता:
SC का "कानून की वैधता का अनुमान" वाला रुख (मार्च 2024) 2023 के कानून को चुनौती देना एक कठिन लड़ाई बना देता है।
रोक न लगने का मतलब: 2024 के चुनावों के लिए कोई तटस्थ ECI नहीं।
राजनीतिक वास्तविकता:
ECI नियुक्तियों पर कार्यपालिका का वर्चस्व चुनावी मैदान को झुकाता है (जैसा कि वैश्विक अधिनायकवादी शासनों में देखा गया)।
विपक्ष के पास जवाबदेही तय करने का संस्थागत अधिकार नहीं।
तुलनात्मक संवैधानिक विश्लेषण
पहलू | भारत | दक्षिण अफ्रीका (अध्याय 9 संस्थान) |
---|---|---|
ECI नियुक्ति | कार्यपालिका-नियंत्रित (2023 कानून) | संवैधानिक रूप से संरक्षित स्वतंत्रता |
न्यायिक भूमिका | SC तटस्थता लागू करने में विफल | अदालतें संस्थागत स्वायत्तता बनाए रखती हैं |
लोकतंत्र सुरक्षा | कमजोर (2023 कानून के बाद) | मजबूत (चुनाव आयोग = चौथा स्तंभ) |
मुख्य संदेश: भारत में "चौथे स्तंभ" (दक्षिण अफ्रीका के अध्याय 9 संस्थानों जैसे स्वतंत्र निकायों) की कमी लोकतंत्र को कमजोर बनाती है।
चुनावी अखंडता बहाल करने के उपाय
कानूनी:
2023 के कानून को रद्द कर अनूप बरनवाल की CJI-अध्यक्षित समिति को बहाल करना।
न्यायिक सक्रियता: SC को "कानून की वैधता का अनुमान" वाले रुख की समीक्षा करनी चाहिए (जैसा ADM जबलपुर के मामले में हुआ)।
संस्थागत:
सत्य आयोग: एक नए तटस्थ ECI द्वारा चुनावी धांधली के आरोपों की जांच।
संविधान संशोधन: ECI को चौथे स्तंभ संस्थान के रूप में औपचारिक रूप देना (दक्षिण अफ्रीका मॉडल की तरह)।
राजनीतिक:
विपक्षी एकता: ECI की स्वायत्तता के लिए सामूहिक दबाव।
जन जागरूकता: कार्यपालिका-नियंत्रित चुनावों के खतरों को उजागर करना।
यूपीएससी प्रासंगिकता
जीएस पेपर-II (राजव्यवस्था एवं शासन):
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति (अनूप बरनवाल बनाम 2023 कानून)।
तुलनात्मक संविधान (भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका के अध्याय 9 संस्थान)।
न्यायिक सक्रियता बनाम संयम (लोकतंत्र में SC की भूमिका)।
जीएस पेपर-IV (नैतिकता):
संस्थागत अखंडता बनाम कार्यपालिका का अतिक्रमण।
नैतिक शासन: लोकतंत्र में तटस्थ अंपायरों की आवश्यकता।
निबंध/समसामयिकी:
"एक स्वतंत्र चुनाव आयोग - लोकतंत्र की आधारशिला"
"लोकतंत्र के रक्षक के रूप में न्यायपालिका: वादे और चुनौतियाँ"
निष्कर्ष: लोकतांत्रिक नवीनीकरण का आह्वान
भारत एक मोड़ पर खड़ा है:
✅ अनूप बरनवाल के सुधारों को बहाल कर निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करें।
✅ वैश्विक मॉडलों से सीखें (जैसे, दक्षिण अफ्रीका का चौथा स्तंभ)।
✅ संवैधानिक संस्थाओं पर कार्यपालिका कब्जे के खिलाफ जनमत जुटाएँ।
विकल्प - एक समझौतावादी ECI - भारतीय लोकतंत्र को बहुसंख्यकवादी अधिनायकवाद में बदलने का जोखिम उठाता है।
(सूर्यवंशी आईएएस यूपीएससी अभ्यर्थियों को मार्गदर्शन देते हैं।)
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