सोरायसिस – एक सार्वजनिक स्वास्थ्य और नैतिक चुनौती
🔹 परिचय
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सोरायसिस (Psoriasis) एक पुरानी, असंक्रामक, ऑटोइम्यून त्वचा रोग है।
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इसमें त्वचा पर लाल, पपड़ीदार, खुजली वाली परतें बनती हैं।
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यह आमतौर पर कोहनी, घुटने, खोपड़ी, पीठ और नितंबों पर होता है।
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भारत में यह रोग लगभग 0.44% से 2.8% लोगों को प्रभावित करता है (Dogra & Yadav, 2010)।
🔹 कारण और तंत्र (Pathophysiology)
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रोग का कारण ओवरएक्टिव इम्यून सिस्टम है, जिससे त्वचा की कोशिकाएं तेजी से बनती हैं।
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आनुवांशिकता, तनाव, मौसम परिवर्तन, मधुमेह, हॉर्मोन असंतुलन, मोटापा, और कोविड-19 के बाद की स्थिति प्रमुख कारण हैं।
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माइक्रोप्लास्टिक, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और रासायनिक उत्पादों की भूमिका भी सामने आई है।
🔹 लक्षण
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त्वचा पर लाल चकत्ते, पपड़ी, फफोले, खुजली, खून बहना।
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नाखूनों में गड्ढे या रेखाएं।
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सिर की त्वचा में संक्रमण।
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गंभीर प्रकार:
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Psoriatic Arthritis – जोड़ों में सूजन
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Erythrodermic Psoriasis – पूरे शरीर में चकत्ते
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🔹 सामाजिक और मानसिक प्रभाव
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रोग आत्म-विश्वास को प्रभावित करता है।
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मरीज नौकरी, सामाजिक गतिविधियों और आत्मसम्मान से पीछे हट जाते हैं।
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मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर (डिप्रेशन, अकेलापन) भी आम है।
🔹 उपचार और प्रबंधन
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उपचार व्यक्तिगत और समग्र दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए:
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टॉपिकल उपचार – क्रीम, ऑइंटमेंट, लोशन
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बायोलॉजिकल दवाएं – गंभीर मामलों में
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फोटोथेरेपी
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जीवनशैली में बदलाव – तनाव प्रबंधन, स्वस्थ आहार
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सह-रुग्णता जैसे मधुमेह और मोटापा उपचार को जटिल बना देते हैं।
🔹 हालिया प्रवृत्तियां
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मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है, विशेषकर युवाओं में।
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चिकित्सकों का अनुभव दर्शाता है कि पहले प्रतिदिन 2-3 केस होते थे, अब 6-7 तक आते हैं।
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अब इसे केवल त्वचा रोग नहीं, बल्कि संपूर्ण शरीर प्रणाली से जुड़ा रोग माना जा रहा है।
🔹 प्रमुख चुनौतियां
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जन जागरूकता की कमी।
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बीमा कवरेज का अभाव।
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दवाओं की उच्च कीमत, विशेष रूप से बायोलॉजिकल दवाएं।
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मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी।
🔹 नैतिक मुद्दे (GS पेपर IV)
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समानता और न्याय: गरीब व ग्रामीण मरीज उन्नत इलाज से वंचित रहते हैं।
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सम्मान और सहानुभूति: रोगियों का सामाजिक बहिष्कार एक नैतिक विफलता है।
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उत्तरदायित्व: प्रणाली में जागरूकता व परामर्श की कमी।
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स्वायत्तता: रोगी को समुचित जानकारी और विकल्प का अधिकार होना चाहिए।
🔹 आगे का रास्ता (Way Forward)
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राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाना।
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आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं में सोरायसिस को शामिल करना।
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मानसिक स्वास्थ्य परामर्श को इलाज का हिस्सा बनाना।
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अनुसंधान और डाटा संग्रहण को बढ़ाना।
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प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना।
🔹 निष्कर्ष
सोरायसिस एक जटिल रोग है जो केवल त्वचा तक सीमित नहीं है, यह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गंभीर चुनौती है। इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए समावेशी नीति, संवेदनशील दृष्टिकोण और वैज्ञानिक नवाचार आवश्यक हैं।
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