चोल साम्राज्य और ख्मेर साम्राज्य के बीच
सांस्कृतिक आदान-प्रदान
सूर्यवंशी आईएएस
द्वारा
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- समयकाल: 9वीं-13वीं शताब्दी (चोलों का स्वर्णिम काल व ख्मेर
साम्राज्य का उत्कर्ष)
- संपर्क के कारण:
- समुद्री
व्यापार: चोलों का
नौसैनिक प्रभुत्व
- धार्मिक संबंध: शैव धर्म का
प्रसार
- राजनीतिक
गठजोड़: चोल शासक
राजेंद्र चोल प्रथम का दक्षिण-पूर्व एशिया अभियान
सांस्कृतिक
आदान-प्रदान के प्रमुख क्षेत्र
1. स्थापत्य कला
चोल प्रभाव |
ख्मेर अनुकूलन |
द्रविड़ शैली के
गोपुरम |
अंगकोर वाट के
प्रवेश द्वार |
ग्रेनाइट निर्माण
(तंजावुर) |
पत्थरों की जटिल
नक्काशी (बायोन मंदिर) |
नटराज मूर्तियाँ |
शिव की नृत्य
मुद्रा में मूर्तियाँ |
उदाहरण:
- अंगकोर वाट के पश्चिमी गोपुरम में चोल वास्तुकला की छाप
- प्रिया विहार मंदिर की स्तंभ शैली में द्रविड़ तत्व
2. धार्मिक आदान-प्रदान
- शैव धर्म:
- चोलों द्वारा सोमस्कंद (शिव परिवार)
की मूर्तियों का निर्यात
- ख्मेरों ने लिंगम पूजा को अपनाया
- वैष्णव धर्म:
- चोल कालीन रामायण चित्रण का
ख्मेर मंदिरों में प्रयोग
- अंगकोर वाट की
दीवारों पर महाभारत के
दृश्य
प्रमाण:
- कंबोडिया के प्रह कोह मंदिर में
तमिल शिलालेख
3. भाषा एवं साहित्य
- संस्कृत: दोनों
साम्राज्यों की राजभाषा
- तमिल प्रभाव:
- ख्मेर
शिलालेखों में तमिल शब्द (उदा. "नगरम" = व्यापारिक गिल्ड)
- कंबोडियाई
नृत्य "अप्सरा" में तमिल कोडियट्टम की छवि
4. प्रशासनिक प्रथाएँ
- जल प्रबंधन:
- चोलों की अनिकट प्रणाली → ख्मेरों के बाराय (जलाशय)
- सैन्य संगठन:
- चोल सेना की कवच शैली का ख्मेर
योद्धाओं द्वारा अनुकरण
यूपीएससी प्रारंभिक
परीक्षा हेतु प्रश्न
1.
चोल-ख्मेर
संबंधों का प्रमुख आधार क्या था?
(a) स्थल व्यापार
(b) समुद्री व्यापार
(c) विवाह संबंध
(d) धर्मयुद्ध
उत्तर: (b) समुद्री व्यापार
2.
अंगकोर
वाट की वास्तुकला पर किस भारतीय शैली का प्रभाव है?
(a) नागर
(b) द्रविड़
(c) वेसर
(d) हेमाडपंथी
उत्तर: (b) द्रविड़
मुख्य परीक्षा हेतु
प्रश्न
1.
"दक्षिण भारत और
दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक समन्वय में चोल साम्राज्य की भूमिका का
विश्लेषण करें।" (GS-I:
इतिहास)
2.
"प्राचीन भारत के
सांस्कृतिक निर्यात में मंदिर वास्तुकला के योगदान पर चर्चा करें।" (GS-I: कला एवं संस्कृति)
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