मौन से मुखरता तक: मेनोपॉज़ पर नयी बात, नयी शुरुआत
✍️ सूर्यवंशी, आईएएस
“जिस शरीर में जीवन आता है, उसी शरीर में बदलाव भी स्वाभाविक है।
लेकिन यदि हम बदलाव पर चुप रहें, तो पीड़ा मौन चीख बन जाती है।”
वर्षों तक, मेनोपॉज़ यानी रजोनिवृत्ति को समाज में एक "स्त्री की समाप्ति" के प्रतीक के रूप में देखा गया। न इसे घरों में चर्चा मिली, न अस्पतालों में पर्याप्त ध्यान। लेकिन आज—जब हॉलीवुड से संसद तक इसकी बात हो रही है, और वैज्ञानिक शोध फिर से इसके इलाज की उपयोगिता सिद्ध कर रहे हैं—अब वक्त है कि हम भी भारतीय नीति और समाज में इस विषय को एक गरिमामयी स्थान दें।
🩸 क्या है मेनोपॉज़?
मेनोपॉज़ वह जैविक अवस्था है जब किसी महिला को लगातार 12 महीने तक मासिक धर्म नहीं होता। यह आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है। इससे पहले आता है पेरिमेनोपॉज़ — एक परिवर्तनशील दौर जिसमें:
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अनियमित माहवारी
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गर्म फ्लैश, पसीना, नींद की कमी
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चिड़चिड़ापन, अवसाद, ध्यान भटकाव
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योनि में सूखापन या असहजता
फिर आता है पोस्टमेनोपॉज़, जो जीवन भर बना रहता है। इस प्रक्रिया में शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की मात्रा घटती है, जो हड्डियों, दिल और मस्तिष्क पर दीर्घकालिक असर डाल सकती है।
🔍 आंकड़ों में मेनोपॉज़
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🌏 2030 तक विश्व में 100 करोड़ महिलाएं पोस्टमेनोपॉज़ अवस्था में होंगी।
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🇮🇳 भारत में हर साल 4 से 5 करोड़ महिलाएं इस परिवर्तन के दौर में प्रवेश करती हैं।
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जीवन प्रत्याशा बढ़ने के कारण, महिलाएं अब अपने जीवन का एक-तिहाई हिस्सा इस अवस्था में बिताती हैं।
लेकिन हैरानी की बात है: इतनी बड़ी आबादी की नीति, चिकित्सा और संवाद में जगह बेहद सीमित है।
🧪 हार्मोनल थेरेपी: भ्रम से स्पष्टता की ओर
2002 में क्या हुआ?
अमेरिका की Women’s Health Initiative नामक अध्ययन में पाया गया कि हार्मोन थेरेपी से स्तन कैंसर, दिल की बीमारी और स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। यह रिपोर्ट आते ही दुनिया भर में इसका इस्तेमाल 50% तक घट गया।
लेकिन अब?
हाल के विश्लेषण में पता चला कि:
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अध्ययन में महिलाएं औसतन 63 वर्ष की थीं – यानी प्राकृतिक मेनोपॉज़ के बहुत बाद।
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अध्ययन का लक्ष्य रोग-निवारण था, न कि लक्षणों से राहत।
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सिर्फ एक प्रकार की दवा को परखा गया था।
अब यह समझा गया है कि 60 वर्ष से कम उम्र में, मेनोपॉज़ के 10 साल के भीतर यदि हार्मोनल थेरेपी शुरू की जाए, तो यह सुरक्षित और प्रभावशाली होती है।
💊 इलाज के नए विकल्प
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Fezolinetant (Veozah): 2023 में FDA द्वारा अनुमोदित, पहला नॉन-हार्मोनल दवा जो गर्म फ्लैश और रात के पसीने में असरदार है।
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सीबीटी (Cognitive Behavioural Therapy): मानसिक लक्षणों में उपयोगी
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एंटी-डिप्रेसेंट्स और एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं भी प्रयोग में आ रही हैं।
🇮🇳 भारत में स्थिति: चुप्पी और चूक
भारत में मेनोपॉज़ को लेकर:
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❌ न महिलाओं को जानकारी, न डॉक्टरों को प्रशिक्षण
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❌ सरकारी अस्पतालों में कोई विशेष मेनोपॉज़ क्लीनिक नहीं
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❌ ग्रामीण क्षेत्रों में इस अवस्था को अक्सर बुढ़ापे या बीमारी समझा जाता है
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❌ सामाजिक दृष्टिकोण में यह "स्त्रीत्व की समाप्ति" की तरह देखा जाता है
परिणामस्वरूप, महिलाएं:
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🔇 चुप रहकर पीड़ा सहती हैं
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🧍♀️ समाज से कटने लगती हैं
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👩💻 कामकाज छोड़ने लगती हैं
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💔 हृदय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों की शिकार बनती हैं
🛣️ भारत के लिए नीति सुझाव
1. "मेनोपॉज़ स्वास्थ्य योजना" का निर्माण
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जिला अस्पतालों में विशेषीकृत क्लीनिक
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मेडिकल स्टाफ को पेरिमेनोपॉज़ और लक्षण प्रबंधन में प्रशिक्षण
2. जन-जागरूकता अभियान
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महिला SHG समूहों, पंचायतों, स्कूलों में सूचना
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"मौन नहीं, मेनोपॉज़ बोलेगा!" जैसे स्लोगन आधारित कैंपेन
3. स्वास्थ्य बीमा में समावेश
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Ayushman Bharat जैसी योजनाओं में HT और दवाओं को कवर करें
4. कार्यस्थल अनुकूलता
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लचीले कार्य घंटे, आरामदायक सीटिंग, सलाह सेवाएं
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खासकर सरकारी कार्यालयों और ग्रामीण महिला संगठनों में
📚 UPSC प्रासंगिकता
GS पेपर 2:
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महिला स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय
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नीति निर्माण में लैंगिक संवेदनशीलता
GS पेपर 3:
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बायोमेडिकल रिसर्च
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दवा स्वीकृति प्रक्रिया (FDA मॉडल)
निबंध और नैतिकता पेपर:
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"शरीर की आवाज़: जब समाज चुप हो जाता है"
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"महिलाओं के जीवन की 'तीसरी उम्र' और नीति की पहली ज़िम्मेदारी"
🌷 निष्कर्ष
"मेनोपॉज़ कोई बीमारी नहीं, जीवन की एक अवस्था है।
परंतु यदि हम इसे नजरअंदाज करेंगे, तो यह दर्द बन जाएगी।"
आज जब विज्ञान आगे बढ़ रहा है, नीतियाँ बदल रही हैं, और महिलाएं खुलकर बोल रही हैं — तो हमें भी इस जैविक बदलाव को गरिमा और सहानुभूति के साथ अपनाना चाहिए।
भारत यदि वास्तव में नारी शक्ति का सम्मान करना चाहता है,
तो यह सम्मान सिर्फ माँ बनने तक सीमित नहीं,
बल्कि हर उम्र, हर रूप, हर बदलाव में होना चाहिए।
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