भारत-अमेरिका संबंध: क्षणिक अड़चन या संरचनात्मक तनाव?
- जे.के. सुर्यवंशी | सिविल सेवा समाचार पत्र
21वीं सदी की सबसे निर्णायक साझेदारियों में माने जाने वाले भारत-अमेरिका संबंध इन दिनों तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। आधिकारिक वक्तव्यों में भले ही रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को "मजबूत और प्राथमिक" बताया गया हो, लेकिन हालिया घटनाक्रम यह संकेत देते हैं कि सतह के नीचे गहरे संरचनात्मक मतभेद मौजूद हैं।
क्या ट्रंपवाद ही कारण है, या केवल एक परत उजागर कर रहा है?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रवादी बयानबाजी, अप्रत्याशित नीतियां और टैरिफ (शुल्क) को भारत की BRICS सदस्यता से जोड़ना — इन सबने द्विपक्षीय संबंधों में तनाव को और बढ़ा दिया है। हालांकि "COMPACT Initiative" जैसे कदम और उच्च स्तरीय बैठकों ने संबंधों को स्थायित्व देने का प्रयास किया, पर अब वॉशिंगटन में भारत को लेकर संदेह की धारा तेजी से उभर रही है।
प्रसिद्ध अमेरिकी रणनीतिकार एशले जे. टेलिस — जो कभी भारत के लिए अमेरिका की 'रणनीतिक उदारता' के पक्षधर थे — अब भारत की ‘महाशक्ति बनने की गलतफहमी’ को लेकर चेतावनी दे रहे हैं।
रणनीतिक स्वायत्तता बनाम अमेरिकी अपेक्षाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति अब पहले से कहीं ज्यादा आत्मनिर्भर और मुखर हुई है। रूस, ईरान और BRICS के साथ रिश्ते बनाए रखना और आतंकवाद के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक को 'नई सामान्यता' बनाना, अमेरिका के लिए असहज है। खासकर जब अमेरिका परमाणु तनाव को लेकर चिंतित रहता है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की नीति को स्पष्ट रूप से “सबका साथ, सबका विकास” बताया है — यानी रूस-यूक्रेन, ईरान-इजरायल, ब्रिक्स और क्वाड, लोकतांत्रिक पश्चिम और वैश्विक दक्षिण — सभी के साथ भारत संवाद रखता है।
अमेरिका की बदलती धारणा
अब दोनों देशों की राजनीति राष्ट्रवाद से प्रभावित है। अमेरिका का America First और भारत का India First एजेंडा — एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। अमेरिका अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ भी समानांतर रिश्ते रखता है (जैसे: कतर-सऊदी, भारत-पाकिस्तान), लेकिन अपने साझेदारों को उतनी छूट नहीं देता। यही कारण है कि भारत के रूस और ईरान से संबंध, अमेरिका के लिए चिंता का विषय हैं।
वहीं भारत को अमेरिका की चीन से मेल-मिलाप और पाकिस्तान के साथ रिश्तों में गर्माहट पर आपत्ति है — खासकर जब भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थन नीति को उजागर करने में जुटा है।
व्यापार की चुनौती
व्यापार को भारत-अमेरिका रिश्तों का मुख्य स्तंभ माना गया था। लेकिन आत्मनिर्भर भारत की नीति और उद्योग संरक्षणवाद ने अमेरिकी कंपनियों को निराश किया है। अमेरिका दशकों से भारत के विशाल बाजार तक पूर्ण पहुंच चाहता रहा है, लेकिन भारत की ओर से पूरी तरह बाज़ार खोलने में हिचक बनी हुई है। ट्रंप ने इसे नीतिगत टकराव में बदल दिया है।
निष्कर्ष: निर्णायक या चुनौतीपूर्ण साझेदारी?
भारत-अमेरिका संबंध अब केवल साझा लोकतांत्रिक मूल्यों या रणनीतिक हितों पर आधारित नहीं हैं। अब यह राष्ट्रवाद, संरचनात्मक मतभेदों और वैश्विक राजनीति के बदलते समीकरणों से प्रभावित हो रहे हैं।
सिविल सेवा परिप्रेक्ष्य से सीख:
आज के बहुध्रुवीय विश्व में, 'प्राकृतिक साझेदारों' के बीच भी टकराव स्वाभाविक हैं। एक सफल सिविल सेवक को इन जटिल समीकरणों को समझना, संतुलन बनाना और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है
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