2023: "भारत का सुप्रीम कोर्ट संविधान में संशोधन की संसद की मनमानी शक्ति पर अंकुश रखता है।" समालोचनात्मक चर्चा करें।
समालोचनात्मक चर्चा (Critical Discussion)
प्रस्तावना
-
संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है।
-
अनुच्छेद 368 संसद को संविधान संशोधन का अधिकार देता है।
-
परंतु संसद का यह अधिकार अनंत नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्याख्या द्वारा कुछ सीमाएँ तय की हैं।
-
इस संदर्भ में “बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत” (Basic Structure Doctrine) महत्वपूर्ण है।
सकारात्मक पक्ष (सुप्रीम कोर्ट की भूमिका)
-
संविधान की आत्मा की रक्षा
-
केशवानंद भारती केस (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूल संरचना (Basic Structure) को नष्ट नहीं कर सकती।
-
यह संसद की मनमानी को रोकने वाला सबसे बड़ा निर्णय था।
-
-
न्यायिक समीक्षा (Judicial Review)
-
इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण केस (1975) में न्यायपालिका ने चुनावी लोकतंत्र और न्यायिक समीक्षा को मूल संरचना माना।
-
इससे यह सुनिश्चित हुआ कि सत्ता का दुरुपयोग कर संसद लोकतंत्र को समाप्त न कर सके।
-
-
लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखना
-
मिनर्वा मिल्स केस (1980) में अदालत ने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति असीमित नहीं है।
-
इससे संसद और न्यायपालिका के बीच संतुलन कायम रहा।
-
-
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा
-
सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि संसद मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से खत्म न कर सके।
-
आलोचनात्मक पक्ष (विवाद / सीमाएँ)
-
न्यायपालिका की अति-हस्तक्षेप (Judicial Overreach)
-
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने “बेसिक स्ट्रक्चर” को परिभाषित कर संसद की लोकतांत्रिक संप्रभुता को सीमित कर दिया।
-
-
स्पष्ट परिभाषा का अभाव
-
मूल संरचना (Basic Structure) की कोई निश्चित सूची नहीं है। अदालत हर मामले में अलग-अलग व्याख्या करती है।
-
-
संसद बनाम न्यायपालिका टकराव
-
यह स्थिति बार-बार संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव का कारण बनी है (उदाहरण: NJAC केस 2015, जहां Collegium प्रणाली को मूल संरचना मानकर संसद के संशोधन को रद्द कर दिया गया)।
-
निष्कर्ष
-
सुप्रीम कोर्ट संसद की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगाकर संविधान की लोकतांत्रिक, संघीय और न्यायिक आत्मा की रक्षा करता है।
-
हालांकि, यह भी सही है कि बेसिक स्ट्रक्चर की अस्पष्टता संसद और न्यायपालिका के बीच खींचतान पैदा करती है।
-
इसीलिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जहाँ संसद संशोधन करे लेकिन संविधान की आत्मा से समझौता न हो, और सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा करे परंतु लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी सम्मान दे।
No comments:
Post a Comment