"क्या भारत को ऑप्ट-आउट अंग दान प्रणाली अपनानी
चाहिए?"
(यूपीएससी मुख्य परीक्षा हेतु विश्लेषण - जीएस पेपर II: शासन व नीतिशास्त्र)
भूमिका
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोग अंगों की अनुपलब्धता के कारण मौत का शिकार होते हैं। वर्तमान ऑप्ट-इन प्रणाली (जहां दाताओं को सक्रिय रूप से पंजीकरण करना होता है) इस समस्या का समाधान करने में विफल रही है। ऑप्ट-आउट प्रणाली (जहां सभी नागरिकों को स्वतः दाता माना जाता है, जब तक वे विशेष रूप से इनकार न करें) अपनाने से अंग दान में वृद्धि हो सकती है, जैसा कि स्पेन (49 दाता/प्रति मिलियन जनसंख्या) में देखा गया है। परंतु इससे नैतिक, कानूनी और सांस्कृतिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं।
मुख्य विश्लेषण
1. ऑप्ट-आउट प्रणाली के लाभ
वैश्विक सफलता:
- स्पेन (विश्व में अग्रणी) और फ्रांस में ऑप्ट-आउट अपनाने के बाद अंग दान में 20-30% की वृद्धि हुई।
- ब्रिटेन ने 2020 में इस प्रणाली को अपनाया और सहमति दर में 7% का उछाल देखा।
परिवारों की असहमति में कमी:
- भारत में, 50% संभावित दान परिवारों के आपत्ति के कारण रद्द हो जाते हैं। ऑप्ट-आउट में दान को डिफ़ॉल्ट माना जाता है, जिससे असहमति कम होगी।
आर्थिक व सामाजिक लाभ:
- अवैध अंग व्यापार पर निर्भरता घटेगी (भारत में प्रतिवर्ष 2,000+ काला बाज़ार किडनी प्रत्यारोपण)।
- SDG 3 (स्वास्थ्य) और संविधान के अनुच्छेद 47 (जनस्वास्थ्य सुधार) के अनुरूप।
2. नैतिक चुनौतियाँ एवं आलोचना
स्वायत्तता बनाम पितृत्ववाद:
- ऑप्ट-आउट सूचित सहमति के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन कर सकता है।
- उदाहरण: वेल्स में 6% लोगों ने ऑप्ट-आउट किया, परंतु कई लोग इस नीति से अनजान थे।
सांस्कृतिक एवं धार्मिक आपत्तियाँ:
- कई समुदाय मृत्यु के बाद शरीर की अखंडता के कारण अंग दान का विरोध करते हैं।
- जापान का उदाहरण: ऑप्ट-आउट अपनाने के बावजूद, सांस्कृतिक विरोध के कारण दान दर निम्न है।
कार्यान्वयन की बाधाएँ:
- अवसंरचना का अभाव: भारत में <5% अस्पताल ही अंग प्रत्यारोपण हेतु प्रमाणित हैं।
- जागरूकता की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग ऑप्ट-आउट प्रक्रिया से अनभिज्ञ हो सकते हैं।
भ्रष्टाचार का जोखिम:
- चीन का घोटाला (कैदियों के अंगों की जबरन निकासी) ने पारदर्शिता के अभाव में जनता का विश्वास खोया।
3. संतुलित समाधान: भारत के लिए संशोधित ऑप्ट-आउट?
🔹 सुरक्षा उपायों के साथ ऑप्ट-आउट:
- अनिवार्य जागरूकता अभियान (एसएमएस, मतदाता आईडी से लिंक पंजीकरण)।
- परिवार को वीटो अधिकार (स्पेन की तरह, जहाँ कानूनी धारणा के बावजूद परिवार से सलाह ली जाती है)।
- सक्रिय दाताओं को प्राथमिकता: इज़राइल का मॉडल, जहाँ ऑप्ट-इन करने वालों को प्रत्यारोपण में वरीयता मिलती है।
🔹 कानूनी सुधार:
- मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA), 1994 में संशोधन कर ऑप्ट-आउट को शामिल किया जाए।
- NOTTO की निगरानी क्षमता को सुदृढ़ कर अंग दान में धोखाधड़ी रोकी जाए।
निष्कर्ष
ऑप्ट-आउट प्रणाली भारत में अंगों की कमी को दूर कर सकती है, परंतु इसकी सफलता निम्न पर निर्भर करेगी:
- नैतिक सुरक्षा उपाय (स्वायत्तता, परिवार की सहमति)।
- जन-जागरूकता ताकि कमजोर वर्गों का शोषण न हो।
- अवसंरचना विकास (प्रशिक्षित कोऑर्डिनेटर्स, प्रमाणित अस्पताल)।
एक चरणबद्ध संकर मॉडल—जो ऑप्ट-आउट की डिफ़ॉल्ट व्यवस्था के साथ-साथ जनभागीदारी को बढ़ावा दे—भारत के लिए उपयुक्त हो सकता है। जैसा कि स्पेन के उदाहरण से स्पष्ट है, सिस्टमिक परिवर्तन के लिए कानूनी सुधार और सामाजिक विश्वास दोनों आवश्यक हैं।
यूपीएससी प्रासंगिकता
पिछले वर्षों के प्रश्न:
- मुख्य परीक्षा (GS-II): "भारत में अंग प्रत्यारोपण से जुड़े नैतिक मुद्दों की समीक्षा करें। सुधार के सुझाव दें।" (2021)
- निबंध: "जीवन का अधिकार, स्वास्थ्य के अधिकार को समाहित करता है।" (2018)
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- THOA अधिनियम, NOTTO, डिफ़ॉल्ट सहमति, SDG 3, अनुच्छेद 21 व 47।
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