साबुन और डिटर्जेंट: बहुआयामी विश्लेषण
वैज्ञानिक संदर्भ
रासायनिक आधार
साबुन: RCOONa (सोडियम लवण) या RCOOK (पोटैशियम लवण)
डिटर्जेंट: सिंथेटिक सर्फेक्टेंट (जैसे सोडियम लॉरिल सल्फेट)
सफाई की क्रियाविधि
उभयचर अणु संरचना:
हाइड्रोफिलिक सिरा (पानी से जुड़ता है)
हाइड्रोफोबिक सिरा (गंदगी से जुड़ता है)
मिसेल निर्माण: गंदगी को घेरकर पानी में घोलना
ऐतिहासिक संदर्भ
वैश्विक विकास यात्रा
प्राचीन काल: मेसोपोटामिया (2800 ईसा पूर्व)
मध्ययुगीन यूरोप: लक्जरी वस्तु, भारी करारोपण
औद्योगिक क्रांति: मशीनीकृत उत्पादन (19वीं सदी)
प्रथम विश्व युद्ध: सिंथेटिक डिटर्जेंट का आविष्कार (1930)
भारतीय संदर्भ
पारंपरिक पद्धतियाँ: रीठा, शिकाकाई, आँवला
स्वदेशी आंदोलन: खादी साबुन (1920 के दशक)
सामाजिक संदर्भ
स्वच्छता और स्वास्थ्य
संक्रमण नियंत्रण: COVID-19 में हाथ धोने का महत्व
सार्वजनिक स्वास्थ्य: डायरिया रोगों में 50% कमी (WHO)
आर्थिक पहलू
रोजगार सृजन: भारत में 5 लाख से अधिक अप्रत्यक्ष रोजगार
लिंग आयाम: 70% साबुन निर्माण इकाइयों में महिला श्रमिक
पर्यावरणीय संदर्भ
प्रमुख चुनौतियाँ
डिटर्जेंट प्रदूषण:
फॉस्फेट्स → यूट्रोफिकेशन → जलीय जीवों की मृत्यु
1 लीटर डिटर्जेंट 10 लाख लीटर पानी को प्रदूषित कर सकता है
पैकेजिंग कचरा:
भारत में प्रतिवर्ष 2.3 मिलियन टन प्लास्टिक रैपर कचरा
सतत समाधान
जैव-डिटर्जेंट: नीम आधारित, एंजाइम युक्त
पैकेजिंग नवाचार: प्लांट-बेस्ड रैपर (भारत में 2025 तक अनिवार्य)
यूपीएससी प्रश्नावली
प्रश्न 1: साबुन और डिटर्जेंट में मूलभूत अंतर स्पष्ट करें (जीएस-III, 2022)
उत्तर रूपरेखा:
रासायनिक संरचना का अंतर
कठोर जल में व्यवहार
पर्यावरणीय प्रभाव की तीव्रता
प्रश्न 2: "स्वच्छता और सतत विकास सह-अस्तित्व में हैं।" टिप्पणी करें (निबंध, 2021)
मुख्य बिंदु:
SDG-6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) का महत्व
जैव-अपघटनीय उत्पादों की भूमिका
सामुदायिक जागरूकता मॉडल (स्वच्छाग्रही की भूमिका)
नवीनतम विकास (2024)
CSIR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी द्वारा विकसित:
अशोक के पत्तों से बना साबुन (एंटी-फंगल गुण)
चावल की भूसी से डिटर्जेंट (कृषि अवशेष उपयोग)
सुझावित कार्यनीति
अंतर-विषयक अध्ययन:
विज्ञान + पर्यावरण + सामाजिक अर्थशास्त्र
केस स्टडी:
केरल का "अर्पणम साबुन" मॉडल (सामुदायिक उद्यम)
नीति विश्लेषण:
EPR (Extended Producer Responsibility) नियमों का प्रभाव
सारांश तालिका: बहुआयामी प्रभाव
आयाम | सकारात्मक प्रभाव | नकारात्मक प्रभाव |
---|---|---|
वैज्ञानिक | रोग नियंत्रण में सहायक | जल रासायनिक संतुलन बिगाड़ना |
सामाजिक | स्वच्छता जागरूकता बढ़ाना | असंगठित क्षेत्र में शोषण |
पर्यावरण | जैव-साबुनों का विकास | प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ाना |
इस बहुआयामी विश्लेषण से स्पष्ट है कि साबुन और डिटर्जेंट का अध्ययन केवल रसायन विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समकालीन भारत की सामाजिक-आर्थिक-पर्यावरणीय चुनौतियों और अवसरों को समझने का महत्वपूर्ण माध्यम है।
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