जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नामांकन: संवैधानिक एवं प्रशासनिक विश्लेषण
सूर्यवंशी आईएएस द्वारा
परिचय
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर करके स्पष्ट किया है कि राज्यपाल
(L-G) विधानसभा के 5
सदस्यों को मनोनीत कर सकता है और इसके लिए मंत्रिपरिषद की सलाह लेना आवश्यक नहीं है। यह मामला संवैधानिक शासन, केंद्र शासित प्रदेशों की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व से जुड़ा हुआ है, जो यूपीएससी परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
- जम्मू-कश्मीर
पुनर्गठन अधिनियम,
2019
- जम्मू-कश्मीर
को दो
केंद्र शासित
प्रदेशों में
विभाजित
किया
गया:
- जम्मू-कश्मीर
(विधानसभा
सहित)
- लद्दाख
(बिना
विधानसभा वाला)
- विधानसभा
की
सदस्य
संख्या 90
से बढ़ाकर
114 की
गई,
जिसमें पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर
(PoJK) के
शरणार्थियों और
कश्मीरी पंडितों के
लिए
सीटें
आरक्षित
की
गईं।
- 2023
का संशोधन
- 5
सदस्यों को
मनोनीत करने
का प्रावधान जोड़ा
गया:
- 2
कश्मीरी प्रवासी (1
महिला
सहित)
- 1
PoJK समुदाय
का सदस्य
- 2
महिलाएं (यदि
L-G को लगे
कि
विधानसभा
में
महिलाओं
का
प्रतिनिधित्व
कम
है)
- कानूनी
चुनौती
- कांग्रेस
नेता रविंद्र
शर्मा ने जनहित
याचिका (PIL) दायर
कर
कहा
कि
यह
प्रावधान सरकार
के बहुमत
को प्रभावित कर
सकता
है।
केंद्र सरकार के प्रमुख तर्क
- राज्यपाल
का विवेकाधिकार
- गृह
मंत्रालय
ने
कहा
कि मनोनयन
L-G का
संवैधानिक कार्य है,
न
कि
मंत्रिपरिषद
की
सलाह
पर
आधारित।
- जम्मू-कश्मीर
पुनर्गठन अधिनियम
की धारा
15 का
हवाला
दिया,
जो
L-G को यह
अधिकार
देती
है।
- राज्यपाल
और सरकार
में अंतर
- हलफनामे
में
स्पष्ट
किया
गया
कि L-G,
सरकार का
विस्तार नहीं बल्कि
एक स्वतंत्र
संवैधानिक पद है।
- संवैधानिक
वैधता
- केंद्र
ने
कहा
कि
यह
संशोधन संविधान
की मूल
संरचना (Basic Structure) का
उल्लंघन
नहीं
करता।
संवैधानिक एवं कानूनी विश्लेषण
1. केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यपाल की भूमिका
- अनुच्छेद
239: केंद्र
शासित
प्रदेशों
का
प्रशासन राष्ट्रपति
(राज्यपाल के
माध्यम से) चलाता
है।
- अनुच्छेद
239AA (दिल्ली
के लिए):
राज्यपाल, पुलिस,
भूमि और
सार्वजनिक व्यवस्था को
छोड़कर,
मंत्रिपरिषद
की
सलाह
पर
कार्य
करता
है।
- जम्मू-कश्मीर
(2019 के
बाद):
दिल्ली
से
अलग,
यहाँ L-G
के पास
अधिक स्वतंत्र
अधिकार हैं।
2. मूल संरचना सिद्धांत
(Basic Structure Doctrine)
- PIL
में
तर्क
दिया
गया
कि मनोनीत
सदस्यों द्वारा
सरकार बनाना/गिराना लोकतंत्र
के
मूल
सिद्धांतों
के
विरुद्ध
है।
- सुप्रीम
कोर्ट के
निर्णय:
- केसवानंद
भारती (1973):
संसद संविधान
की मूल
संरचना में
संशोधन
नहीं
कर
सकती।
- एस.आर.
बोम्मई (1994): संघवाद
और लोकतंत्र मूल
संरचना
का
हिस्सा
हैं।
3. अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से तुलना
- पुडुचेरी:
L-G, राष्ट्रपति को
कोई
भी
विधेयक
भेज
सकता
है।
- दिल्ली:
L-G, आरक्षित
विषयों में
स्वतंत्र
निर्णय
ले
सकता
है।
- जम्मू-कश्मीर:
2019 के बाद L-G
की शक्तियाँ
अधिक व्यापक हैं।
यूपीएससी के पिछले वर्षों के प्रश्न
(2016-2024)
प्रारंभिक परीक्षा
(Prelims) के प्रश्न
प्रश्न 1.
(2023) केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- केंद्र
शासित
प्रदेश
का
राज्यपाल,
मंत्रिपरिषद
की
सलाह
पर
कार्य
करता
है।
- दिल्ली
में,
राज्यपाल
को
पुलिस
और
सार्वजनिक
व्यवस्था
के
मामलों
में
विवेकाधिकार
प्राप्त
है।
- राष्ट्रपति,
प्रशासनिक
आदेशों
के
माध्यम
से
राज्यपाल
की
शक्तियों
को
विनियमित
कर
सकता
है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) केवल 2
- व्याख्या:
- कथन
1: गलत
(दिल्ली
में
केवल
आरक्षित
विषयों
को
छोड़कर)।
- कथन
2: सही
(अनुच्छेद
239AA के अनुसार)।
- कथन
3: गलत
(शक्तियाँ
संसद
द्वारा
निर्धारित
होती
हैं,
राष्ट्रपति
द्वारा
नहीं)।
प्रश्न 2.
(2021) जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- जम्मू-कश्मीर
पुनर्गठन
अधिनियम,
2019 ने राज्य
को
दो
केंद्र
शासित
प्रदेशों
में
विभाजित
किया।
- जम्मू-कश्मीर
में
विधानसभा
है,
जबकि
लद्दाख
में
नहीं
है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों
- व्याख्या:
- कथन
1: सही
(जम्मू-कश्मीर
और
लद्दाख
दो
अलग-अलग
केंद्र
शासित
प्रदेश
बने)।
- कथन
2: सही
(लद्दाख
में
विधानसभा
नहीं
है)।
मुख्य परीक्षा
(Mains) के प्रश्न
प्रश्न.
(2022) "जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति के संवैधानिक प्रभावों की विवेचना कीजिए।"
(15 अंक)
उत्तर लेखन की रूपरेखा:
- परिचय:
जम्मू-कश्मीर
पुनर्गठन
अधिनियम,
2019 में मनोनयन
प्रावधान।
- संवैधानिक
प्रावधान: अनुच्छेद
239, दिल्ली के
साथ
तुलना।
- कानूनी
मुद्दे: मूल
संरचना
सिद्धांत,
लोकतांत्रिक
प्रतिनिधित्व।
- न्यायिक
निर्णय: केसवानंद
भारती,
एस.आर.
बोम्मई।
- निष्कर्ष:
प्रशासनिक
स्वायत्तता
और
लोकतंत्र
के
बीच
संतुलन।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर में मनोनीत सदस्यों का मामला यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है, जो निम्नलिखित विषयों से जुड़ता है:
- भारतीय
राजव्यवस्था (केंद्र
शासित
प्रदेशों
का
शासन)
- संविधानिक
कानून (मूल
संरचना,
संघवाद)
- समसामयिकी (2019
के
बाद
जम्मू-कश्मीर
में
परिवर्तन)
अभ्यर्थियों को न्यायालय के निर्णयों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को गहराई से समझना चाहिए।
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