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Wednesday, August 6, 2025

आंतरिक सुरक्षा, न्यायपालिका, और शासन व्यवस्था

आंतरिक सुरक्षा, न्यायपालिका, और शासन व्यवस्था 


📝 UPSC-स्टाइल नोट्स (हिंदी में)

📘 GS Paper 2

विषय: शासन व्यवस्था, न्यायिक प्रणाली, जांच एजेंसियों की भूमिका
विषय: शक्ति पृथक्करण, न्यायपालिका पर दबाव, कानून का शासन


🔹 प्रकरण 1: 2008 मालेगांव बम विस्फोट

  • घटना:

    • दिनांक: 29 सितंबर 2008

    • स्थान: मालेगांव, महाराष्ट्र (मुस्लिम बहुल इलाका)

    • हताहत: 6 मृत, 95 घायल

  • आरोपी:

    • 7 लोग, जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल

    • संगठन: अभिनव भारत से जुड़ाव का आरोप

  • जांच एजेंसियाँ:

    • प्रारंभिक जांच: महाराष्ट्र ATS (हेमंत करकरे)

    • बाद में: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)

    • ‘भगवा आतंकवाद’ शब्दावली का जन्म इसी केस से

    • विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने 2015 में आरोप लगाया कि सरकार ने उन पर "नरम पड़ने" का दबाव डाला

  • 2024 में निर्णय:

    • सभी आरोपी बरी

    • बरी करने के कारण:

      • सबूत अस्पष्ट, अविश्वसनीय और कानूनी रूप से अस्वीकार्य

      • गवाहों के बयान परस्पर विरोधाभासी

      • मोटरसाइकिल और प्रज्ञा ठाकुर के बीच कोई सीधा संबंध नहीं

      • UAPA और MCOCA के उपयोग में प्रक्रिया संबंधी खामियां

    • न्यायिक टिप्पणी:

      • "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता", लेकिन दोष साबित होने पर ही सजा दी जा सकती है


🔹 प्रकरण 2: 2006 मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाके

  • घटना:

    • दिनांक: 11 जुलाई 2006

    • स्थान: मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनें

    • हताहत: 189 मृत, 824 घायल

  • आरोपी:

    • पहले ट्रायल कोर्ट द्वारा 12 को दोषी ठहराया गया था

  • जांच एजेंसियाँ:

    • ATS: लश्कर-ए-तैयबा और SIMI को जिम्मेदार ठहराया

    • NIA: इंडियन मुजाहिदीन पर आरोप लगाया

  • 2024 में निर्णय:

    • सभी 12 आरोपी बरी बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा

    • बरी करने के कारण:

      • गवाहों के बयान 100 दिन बाद दर्ज, अविश्वसनीय

      • परिस्थितिजन्य साक्ष्य कमजोर, कॉल रिकॉर्डिंग पर अत्यधिक निर्भरता

      • विस्फोटक पदार्थ की पुष्टि नहीं, बरामदगी की चेन टूटी

      • कबूलनामे जबरदस्ती लिए जाने के आरोप

    • हाई कोर्ट की आलोचना:

      • जांच और अभियोजन में गंभीर खामियां

      • ट्रायल कोर्ट के निर्णय की आलोचना की


🔹 साझा चिंताएं (कॉमन थीम)

  • न्याय मिलने में विलंब, पीड़ितों को दो दशक इंतजार करना पड़ा

  • जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह

  • एजेंसियों के बीच विरोधाभास (ATS बनाम NIA)

  • राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका

  • न्यायिक प्रणाली में आम जनता का विश्वास कमजोर होना

  • आंतरिक सुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव


⚖️ महत्वपूर्ण न्यायिक संदर्भ (Supreme Court Cases)

  • विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022) – प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या

  • वीरभद्र सिंह बनाम ईडी (2017) – ECIR की वैधता पर निर्णय


📖 प्रासंगिक UPSC मुख्य परीक्षा प्रश्न (GS-2, अंतिम 8 वर्षों से)

वर्षप्रश्न
2021"संस्थागत जवाबदेही शासन का मूल तत्व है।" जांच एजेंसियों के संदर्भ में विवेचना करें।
2020"कानून का शासन अच्छा प्रशासन सुनिश्चित करता है।" भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के संदर्भ में चर्चा करें।
2019"जांच प्रक्रियाओं में पारदर्शिता व जवाबदेही का अभाव न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करता है।" स्पष्ट कीजिए।
2018भारत में पुलिस सुधारों की आवश्यकता और स्वतंत्र जांच प्रणाली की चर्चा कीजिए।

🧠 उत्तर लेखन हेतु रूपरेखा (Mains Answer Framework)

प्रश्न: भारत में आतंकवाद से संबंधित मामलों में जांच एजेंसियों की भूमिका एवं न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर उसके प्रभाव पर चर्चा करें।

परिचय:

  • मालेगांव (2008) और मुंबई (2006) जैसे मामलों के संदर्भ में संदिग्ध न्यायिक प्रक्रिया

मुख्य भाग:

  • जांच में देरी, गवाहों के बयान में विसंगतियां

  • राजनीतिक दबाव की आशंका

  • एजेंसियों की साख पर सवाल

  • अपराधियों को सजा न मिलना: न्याय में विफलता

  • पीड़ितों के लिए कोई न्यायिक समाधान नहीं

निष्कर्ष:

  • जांच एजेंसियों में सुधार की आवश्यकता

  • निष्पक्ष और तकनीकी रूप से सक्षम जांच प्रणाली की स्थापना

  • लोकतंत्र और कानून के शासन को बनाए रखने हेतु विश्वसनीय न्याय प्रणाली का निर्माण

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