आंतरिक सुरक्षा, न्यायपालिका, और शासन व्यवस्था
📝 UPSC-स्टाइल नोट्स (हिंदी में)
📘 GS Paper 2
विषय: शासन व्यवस्था, न्यायिक प्रणाली, जांच एजेंसियों की भूमिका
विषय: शक्ति पृथक्करण, न्यायपालिका पर दबाव, कानून का शासन
🔹 प्रकरण 1: 2008 मालेगांव बम विस्फोट
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घटना:
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दिनांक: 29 सितंबर 2008
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स्थान: मालेगांव, महाराष्ट्र (मुस्लिम बहुल इलाका)
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हताहत: 6 मृत, 95 घायल
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आरोपी:
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7 लोग, जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल
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संगठन: अभिनव भारत से जुड़ाव का आरोप
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जांच एजेंसियाँ:
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प्रारंभिक जांच: महाराष्ट्र ATS (हेमंत करकरे)
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बाद में: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
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‘भगवा आतंकवाद’ शब्दावली का जन्म इसी केस से
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विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने 2015 में आरोप लगाया कि सरकार ने उन पर "नरम पड़ने" का दबाव डाला
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2024 में निर्णय:
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सभी आरोपी बरी
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बरी करने के कारण:
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सबूत अस्पष्ट, अविश्वसनीय और कानूनी रूप से अस्वीकार्य
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गवाहों के बयान परस्पर विरोधाभासी
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मोटरसाइकिल और प्रज्ञा ठाकुर के बीच कोई सीधा संबंध नहीं
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UAPA और MCOCA के उपयोग में प्रक्रिया संबंधी खामियां
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न्यायिक टिप्पणी:
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"आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता", लेकिन दोष साबित होने पर ही सजा दी जा सकती है
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🔹 प्रकरण 2: 2006 मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाके
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घटना:
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दिनांक: 11 जुलाई 2006
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स्थान: मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनें
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हताहत: 189 मृत, 824 घायल
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आरोपी:
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पहले ट्रायल कोर्ट द्वारा 12 को दोषी ठहराया गया था
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जांच एजेंसियाँ:
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ATS: लश्कर-ए-तैयबा और SIMI को जिम्मेदार ठहराया
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NIA: इंडियन मुजाहिदीन पर आरोप लगाया
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2024 में निर्णय:
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सभी 12 आरोपी बरी बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा
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बरी करने के कारण:
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गवाहों के बयान 100 दिन बाद दर्ज, अविश्वसनीय
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परिस्थितिजन्य साक्ष्य कमजोर, कॉल रिकॉर्डिंग पर अत्यधिक निर्भरता
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विस्फोटक पदार्थ की पुष्टि नहीं, बरामदगी की चेन टूटी
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कबूलनामे जबरदस्ती लिए जाने के आरोप
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हाई कोर्ट की आलोचना:
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जांच और अभियोजन में गंभीर खामियां
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ट्रायल कोर्ट के निर्णय की आलोचना की
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🔹 साझा चिंताएं (कॉमन थीम)
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न्याय मिलने में विलंब, पीड़ितों को दो दशक इंतजार करना पड़ा
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जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह
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एजेंसियों के बीच विरोधाभास (ATS बनाम NIA)
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राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका
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न्यायिक प्रणाली में आम जनता का विश्वास कमजोर होना
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आंतरिक सुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव
⚖️ महत्वपूर्ण न्यायिक संदर्भ (Supreme Court Cases)
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विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022) – प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या
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वीरभद्र सिंह बनाम ईडी (2017) – ECIR की वैधता पर निर्णय
📖 प्रासंगिक UPSC मुख्य परीक्षा प्रश्न (GS-2, अंतिम 8 वर्षों से)
वर्ष | प्रश्न |
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2021 | "संस्थागत जवाबदेही शासन का मूल तत्व है।" जांच एजेंसियों के संदर्भ में विवेचना करें। |
2020 | "कानून का शासन अच्छा प्रशासन सुनिश्चित करता है।" भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के संदर्भ में चर्चा करें। |
2019 | "जांच प्रक्रियाओं में पारदर्शिता व जवाबदेही का अभाव न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करता है।" स्पष्ट कीजिए। |
2018 | भारत में पुलिस सुधारों की आवश्यकता और स्वतंत्र जांच प्रणाली की चर्चा कीजिए। |
🧠 उत्तर लेखन हेतु रूपरेखा (Mains Answer Framework)
प्रश्न: भारत में आतंकवाद से संबंधित मामलों में जांच एजेंसियों की भूमिका एवं न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर उसके प्रभाव पर चर्चा करें।
परिचय:
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मालेगांव (2008) और मुंबई (2006) जैसे मामलों के संदर्भ में संदिग्ध न्यायिक प्रक्रिया
मुख्य भाग:
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जांच में देरी, गवाहों के बयान में विसंगतियां
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राजनीतिक दबाव की आशंका
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एजेंसियों की साख पर सवाल
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अपराधियों को सजा न मिलना: न्याय में विफलता
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पीड़ितों के लिए कोई न्यायिक समाधान नहीं
निष्कर्ष:
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जांच एजेंसियों में सुधार की आवश्यकता
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निष्पक्ष और तकनीकी रूप से सक्षम जांच प्रणाली की स्थापना
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लोकतंत्र और कानून के शासन को बनाए रखने हेतु विश्वसनीय न्याय प्रणाली का निर्माण
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