विश्व फेफड़े कैंसर दिवस: साँस लेना विशेषाधिकार नहीं, जन्मसिद्ध अधिकार है — भारत को अब चेत जाना चाहिए
✍️ लेखक: जे.के. सूर्यवंशी
— एक ऐसी बीमारी पर, जो चुपचाप मारती है, और एक राष्ट्र पर, जो अब भी चुप है
“हम अर्थव्यवस्था पर बहस करते हैं, चुनाव पर लड़ते हैं।
पर क्या कोई पूछेगा — जनता की साँसों का क्या?”
1 अगस्त को पूरी दुनिया मनाती है विश्व फेफड़े कैंसर दिवस (World Lung Cancer Day) —
पर यह सिर्फ एक तारीख नहीं है, यह एक जागृति है, एक आईना जो दिखाता है कि हम कितनी तेजी से अपने ही साँसों के दुश्मन बनते जा रहे हैं।
🌍 फेफड़े का कैंसर: एक वैश्विक आपदा
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🌐 हर साल 2.2 मिलियन (22 लाख) नए फेफड़े कैंसर के मामले
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☠️ लगभग 18 लाख मौतें — जो सभी कैंसर मौतों का 18% से अधिक है
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🌪️ यह आज भी दुनिया का सबसे घातक कैंसर है
विकसित देशों (जैसे अमेरिका, जापान, यूके) में अब मौतों की दर कम हो रही है —
क्योंकि वहाँ:
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जल्दी पहचान,
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सख्त धूम्रपान कानून,
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और स्वच्छ वायु नीति लागू हैं।
लेकिन भारत में?
आँकड़े बढ़ते जा रहे हैं। और चुप्पी और गहरी होती जा रही है।
🇮🇳 भारत में फेफड़े कैंसर: एक उभरता हुआ संकट
🔍 आंकड़े (ICMR, Globocan 2020 के अनुसार):
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📈 भारत में हर साल 72,510 फेफड़े कैंसर के नए मामले
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☠️ हर साल 66,279 मौतें फेफड़े कैंसर से
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🔴 80% से अधिक मामलों की पहचान स्टेज 3 या 4 पर होती है — यानी बहुत देर में
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👨🦱 पुरुषों में यह दूसरा सबसे आम कैंसर है (पहला — मुँह का कैंसर)
🚹 पुरुषों पर असर ज़्यादा:
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भारत में धूम्रपान से जुड़े कैंसर, पुरुषों की 25% से अधिक मौतों का कारण हैं
🌍 भारत बनाम विश्व: तुलना जो चौंकाती है
संकेतक | 🌍 विश्व स्तर | 🇮🇳 भारत |
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वार्षिक नए मामले | 22 लाख | ~72,500 |
वार्षिक मौतें | 18 लाख | ~66,300 |
जल्दी पहचान दर | >40% | <15% |
5 साल जीवित रहने की दर | ~20% | <5% |
नियमित सीटी स्कैन कवरेज | प्रचलित | नगण्य |
तंबाकू नियंत्रण नीति | कड़ी | मध्यम (कम लागू) |
🚬 तंबाकू: भारत का खुला जहर
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भारत में 28 करोड़ तंबाकू उपभोक्ता — दुनिया में दूसरा स्थान
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हर साल 13 लाख से अधिक मौतें तंबाकू से
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🚬 बिडी, सिगरेट, गुटखा — सस्ते, खुले में बिकते हैं
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कई राज्यों में नाबालिगों को भी आसानी से मिल जाता है तंबाकू
किताबों पर टैक्स, पर कैंसर की पुड़िया सस्ती — ये कैसी नीति?
🏭 प्रदूषण: साँसों का अदृश्य कातिल
फेफड़े का कैंसर सिर्फ धूम्रपान से नहीं होता —
भारत में वायु प्रदूषण भी एक बड़ा कारण बन चुका है।
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🌆 दुनिया के 20 में से 14 सबसे प्रदूषित शहर भारत में
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🚨 PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण, सीधे फेफड़ों में कैंसर का कारण बनते हैं
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WHO ने वायु प्रदूषण को ग्रुप 1 कार्सिनोजेन माना है — यानी कैंसर पैदा करने वाला
सिगरेट नहीं पी, फिर भी सांसों से ज़हर अंदर जा रहा है।
⚠️ लक्षण जिन पर ध्यान देना चाहिए
फेफड़े के कैंसर की सबसे बड़ी चुनौती —
शुरुआत में कोई लक्षण नहीं होते।
जब लक्षण आते हैं, तब बीमारी अक्सर बहुत बढ़ चुकी होती है।
🚩 प्रमुख लक्षण:
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लगातार खांसी
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सीने में दर्द
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वजन कम होना
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खून वाली खांसी
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सांस लेने में तकलीफ़
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थकावट
🔍 स्क्रीनिंग:
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Low-Dose CT Scan — सबसे असरदार
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लक्षित समूह: 50+ उम्र, धूम्रपान इतिहास, औद्योगिक कामगार, परिवार में इतिहास
भारत में यह जांच:
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मंहगी,
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शहरी क्षेत्रों तक सीमित,
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और सरकारी योजनाओं में शामिल नहीं
💊 इलाज उपलब्ध, पर पहुँच दुर्लभ
भारत में आधुनिक उपचार उपलब्ध:
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सर्जरी
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कीमोथेरेपी
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इम्यूनोथेरेपी
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टार्गेटेड थेरेपी
लेकिन:
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इलाज लाखों में, बीमा से बाहर
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ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञों की भारी कमी
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सरकारी अस्पतालों में लंबी प्रतीक्षा सूची
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ज्यादातर मरीज आखिरी स्टेज में आते हैं
भारत में फेफड़े का मरीज सिर्फ बीमारी से नहीं, सिस्टम से भी लड़ता है।
✅ रोकथाम: इलाज से ज़्यादा असरदार, ज़्यादा सस्ता
भारत को चाहिए:
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🚭 सिंगल सिगरेट / बीड़ी बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध
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🚫 पब्लिक प्लेस पर सख्त धूम्रपान रोकथाम
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🏥 CT स्कैन को स्क्रीनिंग नीति में शामिल करना
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🧪 आयुष्मान भारत में फेफड़े की जांच को शामिल करना
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🌱 शहरों में ग्रीन जोन बनाना, वायु गुणवत्ता सुधारना
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📢 स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान
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💰 तंबाकू पर भारी टैक्स और जांच पर सब्सिडी
🌞 सूर्यवंशी दृष्टिकोण: अब और देरी नहीं
हम कब तक साँसों को नज़रअंदाज़ करेंगे?
फेफड़े का कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहीं — यह एक चेतावनी है।
अगर हमने अभी नहीं चेता, तो अगला आँकड़ा कोई अपना हो सकता है।
हमें:
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मरीज को दोष देना बंद करना होगा,
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सरकार से जवाबदेही माँगनी होगी,
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और स्वच्छ वायु को नारा नहीं, अधिकार बनाना होगा।
"साँस लेना हर इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार है।
आइए, ऐसा भारत बनाएं जहाँ ये अधिकार छीना न जाए —
न सिगरेट से, न धुएँ से, न चुप्पी से।"
— जे.के. सूर्यवंशी
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