“रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए तकनीक के स्वदेशीकरण की भूमिका पर चर्चा करें।” का UPSC GS-3 उत्तर लेखन के अनुसार एक विस्तृत, संरचित और विश्लेषणात्मक उत्तर (250 शब्दों में):
✍️ उत्तर प्रारंभ (Introduction):
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता केवल सैन्य बल को सशक्त बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रणनीतिक स्वायत्तता, विदेशी निर्भरता में कमी, और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस आत्मनिर्भरता की आधारशिला है – तकनीक का स्वदेशीकरण, जिससे भारत अपने बलबूते पर रक्षा उपकरणों, प्लेटफॉर्म्स और प्रणालियों का विकास कर सकता है।
मुख्य उत्तर (Body):
स्वदेशी तकनीक की भूमिका:
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रणनीतिक स्वायत्तता:
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भारत जैसे देश को युद्धकालीन आपूर्ति बाधाओं से बचाने के लिए जरूरी है कि हथियार प्रणाली घरेलू तकनीकों पर आधारित हो।
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उदाहरण: LCA Tejas, INS Vikrant, DRDO के रडार व मिसाइल सिस्टम्स।
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विदेशी निर्भरता में कमी:
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अभी भी भारत 45-50% रक्षा आयात करता है, परंतु स्वदेशी तकनीक से यह निर्भरता घटाई जा सकती है।
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रोजगार व आर्थिक सशक्तिकरण:
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निजी क्षेत्र, MSMEs और स्टार्टअप्स के लिए नए अवसर बनते हैं।
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उदाहरण: Defence Corridors in Tamil Nadu and UP।
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दीर्घकालिक लागत में कमी:
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विदेशी खरीद के स्थान पर देश में निर्माण से लागत घटती है और रख-रखाव में सुविधा होती है।
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निर्यात क्षमता में वृद्धि:
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भारत आज BrahMos मिसाइल, Pinaka रॉकेट सिस्टम जैसे हथियार निर्यात कर रहा है।
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चुनौतियाँ:
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उच्च तकनीक में सीमित क्षमता (जैसे जेट इंजन)
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अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश की कमी
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निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के बीच समन्वय की कमी
सरकार की पहलें:
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‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत 400+ रक्षा वस्तुओं की आयात प्रतिबंध सूची
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iDEX (Innovations for Defence Excellence) – स्टार्टअप्स और MSMEs को प्रोत्साहन
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Make in India, DRDO Transfer of Technology, Defence Acquisition Procedure 2020
निष्कर्ष (Conclusion):
तकनीक का स्वदेशीकरण सिर्फ रक्षा उत्पादन नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की सुरक्षा और प्रतिष्ठा का दर्पण है। भारत को यदि एक वैश्विक सैन्य शक्ति बनना है, तो उसे अनुसंधान, निवेश और साझेदारी के माध्यम से रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता की दिशा में और तेज़ी से बढ़ना होगा।
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