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Saturday, August 2, 2025

प्रश्न: "भारत में पवन ऊर्जा परियोजनाओं का वितरण किन भौगोलिक व पारिस्थितिकीय कारकों पर निर्भर करता है? इन कारकों को थार और खंभात के उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।" (250 शब्द)

 

प्रश्न:

"भारत में पवन ऊर्जा परियोजनाओं का वितरण किन भौगोलिक व पारिस्थितिकीय कारकों पर निर्भर करता है? इन कारकों को थार और खंभात के उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।"
(250 शब्द)


उत्तर:

भारत में पवन ऊर्जा परियोजनाओं का स्थान निर्धारण मुख्यतः उन भौगोलिक और पारिस्थितिकीय कारकों पर निर्भर करता है, जो ऊर्जा उत्पादन की दक्षता, लागत, और पर्यावरणीय प्रभावों को प्रभावित करते हैं।

🔸 मुख्य भौगोलिक कारक:

  1. हवा की औसत गति: 6 m/s से अधिक गति वाले क्षेत्र उपयुक्त माने जाते हैं।

  2. स्थलाकृति: पठारी, खुला एवं सपाट भूभाग वांछनीय होता है।

  3. समुद्रतटीय निकटता: समुद्री हवाएं अधिक स्थिर होती हैं, जिससे अपतटीय परियोजनाएं लाभकारी बनती हैं।

  4. ट्रांसमिशन अवसंरचना: विद्युत ग्रिड से निकटता लागत कम करती है।

  5. जनसंख्या घनत्व: कम आबादी वाले क्षेत्र भूमि अधिग्रहण में आसान होते हैं।

🔸 पारिस्थितिकीय कारक:

  1. जैव विविधता: प्रवासी पक्षी मार्ग या संरक्षित क्षेत्रों में टरबाइनों की स्थापना टकराव की घटनाओं को बढ़ा सकती है।

  2. समुद्री पारिस्थितिकी: अपतटीय परियोजनाओं में निर्माण के दौरान ध्वनि और गाद स्तर में वृद्धि से समुद्री जीव प्रभावित हो सकते हैं।

🔍 उदाहरण द्वारा स्पष्टता:

  • थार रेगिस्तान (राजस्थान):

    • उच्च हवा उपलब्धता और खुला भूभाग – पवन ऊर्जा के लिए अनुकूल।

    • परंतु, यह क्षेत्र Central Asian Flyway में आता है, जिससे पक्षियों की मृत्यु दर उच्च है।

    • 2025 के अध्ययन के अनुसार, यहाँ प्रति 1000 वर्ग किमी में ~4,464 पक्षी प्रतिवर्ष मरते हैं।

  • खंभात की खाड़ी (गुजरात):

    • अपतटीय पवन ऊर्जा के लिए रणनीतिक तटीय क्षेत्र।

    • पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) में डॉल्फ़िन, शार्क, व समुद्री सरीसृपों की उपस्थिति दर्ज की गई।

    • निर्माण चरण में शोर और गाद के कारण पारिस्थितिकी पर प्रभाव की आशंका।


निष्कर्ष:

भारत में पवन ऊर्जा का सतत विस्तार केवल भौगोलिक उपयुक्तता नहीं, बल्कि पारिस्थितिकीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए। नीति-निर्माण में "स्थानिक नियोजन + पारिस्थितिक संरक्षण" का समन्वय अनिवार्य है।

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