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Tuesday, August 5, 2025

80 वर्षों बाद भी जिन्दा डर: परमाणु हथियारों के 'न-प्रयोग' के सिद्धांत पर संकट

 

80 वर्षों बाद भी जिन्दा डर: परमाणु हथियारों के 'न-प्रयोग' के सिद्धांत पर संकट

✍️ Suryavanshi IAS द्वारा UPSC विशेष ब्लॉग


📘 UPSC सिलेबस से संबंध

🔷 GS Paper 2:

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत की भूमिका

  • वैश्विक नियम-आधारित व्यवस्था

  • भारत की सामरिक स्वायत्तता

🔷 GS Paper 3:

  • आंतरिक सुरक्षा पर बाहरी राज्यों और गैर-राज्य कारकों की भूमिका

  • प्रौद्योगिकी का सुरक्षा पर प्रभाव

  • परमाणु नीति और निरस्त्रीकरण


🧭 प्रसंग: हिरोशिमा और नागासाकी के 80 वर्ष बाद — क्या परमाणु हथियार अब भी निषिद्ध हैं?

6 अगस्त 1945, सुबह 8:15 बजे — हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा गिराया गया परमाणु बम एक क्षण में 70,000 से अधिक लोगों की जान ले गया
तीन दिन बाद, नागासाकी पर दूसरा बम गिराया गया जिससे 40,000 लोग उसी दिन मारे गए
1945 के बाद से अब तक परमाणु हथियार का युद्ध में दोबारा उपयोग नहीं हुआ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका अस्तित्व खतरे से खाली है।

आज, परमाणु हथियार रखने वाले देशों की संख्या 1 से बढ़कर 9 हो चुकी है।
उनके हथियार अब अधिक आधुनिक, विविध और "उपयोग करने योग्य" हो गए हैं।
ऐसे में "न-प्रयोग की मान्यता" (Norm of Non-Use) आज भारी दबाव में है।


☢️ हिबाकुशा और मानवता की चेतावनी

हिबाकुशा — हिरोशिमा और नागासाकी के बचे हुए लोग —
इन लोगों ने दशकों तक दुनिया को परमाणु युद्ध के नैतिक और मानवीय खतरों के बारे में बताया।

लेकिन, उनके अनुभवों को सुनने और समझने में दशकों लग गए
अमेरिकी सेना ने युद्ध के बाद लंबे समय तक जानकारी को दबाया
जनता को यह तक नहीं बताया गया कि लोग रेडिएशन बीमारियों से मर रहे हैं, क्योंकि अमेरिका अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता था।

📌 1954 — एक अनचाही सच्चाई उजागर होती है:

  • Castle Bravo नामक थर्मोन्यूक्लियर परीक्षण, अपेक्षा से दोगुना शक्तिशाली निकला।

  • फुकुर्यु मारू नामक जापानी मछली पकड़ने वाली नाव 86 मील दूर थी, फिर भी उसकी पूरी टीम रेडिएशन विषाक्तता से बीमार पड़ गई

यहीं से दुनिया को समझ में आया कि परमाणु बम केवल विस्फोट से नहीं, बल्कि धीमी, पीड़ादायक मौतें भी लाता है।


🧠 क्या परमाणु हथियारों का "न-प्रयोग" केवल नैतिकता से प्रेरित है?

यह बहस आज भी जारी है —
क्या परमाणु हथियारों का उपयोग न करने का श्रेय हिबाकुशा को जाता है या परमाणु प्रतिरोध (Deterrence) को?

  • शीत युद्ध के समय परमाणु हथियारों की संख्या 70,000 से अधिक थी।

  • अब यह घटकर 13,000 के आसपास है — लेकिन वे हथियार कई गुना घातक हो चुके हैं।

  • कुछ हथियार अब "सर्जिकल" या "टैक्टिकल" उपयोग के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।

➡️ क्या हमें एक शहर को नष्ट करने वाले बम से डरना चाहिए, या छोटे लक्ष्य पर सटीक हमला करने वाले "लड़ाई योग्य" परमाणु हथियारों से?


⚖️ परमाणु हथियारों का अंतरराष्ट्रीय कानून में स्थान

  • NPT (परमाणु अप्रसार संधि): परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकती है, लेकिन प्रयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाती।

  • CTBT (परीक्षण पर प्रतिबंध संधि): केवल परीक्षण को रोकती है।

  • 2017 की परमाणु प्रतिबंध संधि: एकमात्र संधि जो स्पष्ट रूप से परमाणु हथियारों पर रोक लगाती है — लेकिन इसे किसी भी परमाणु हथियार संपन्न देश ने स्वीकार नहीं किया।

👉 इसका मतलब — परमाणु हथियारों का न-प्रयोग केवल राजनीतिक और नैतिक समझौता है, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं


🛑 हाल की घटनाएँ: न-प्रयोग की नीति पर संकट

🌍 रूस और यूक्रेन:

  • रूस द्वारा यूक्रेन युद्ध के दौरान परमाणु धमकियाँ देना

  • इससे परमाणु हथियारों की विशेष स्थिति को गंभीर चुनौती मिली है

🇮🇳 भारत और ऑपरेशन सिंदूर:

  • अप्रैल 2025 में भारत पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई

  • पीएम मोदी का बयान:

    "भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को सहन नहीं करेगा।"

  • इससे सीमित सैन्य कार्रवाई में परमाणु तत्व जुड़ गया


🏆 हिबाकुशा को नोबेल शांति पुरस्कार (2024)

हिबाकुशा का समूह Nihon Hidankyo कई दशकों से परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए काम कर रहा था।
इन्हें 2024 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला, जब यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को फिर से परमाणु युद्ध की वास्तविकता से रूबरू कराया।


📉 चेतावनी: कहीं बहुत देर न हो जाए

इतिहास गवाह है —
Castle Bravo परीक्षण की चूक से दुनिया को परमाणु रेडिएशन का सच समझ में आया।
क्या हम फिर किसी "गलती" का इंतजार कर रहे हैं, जब परमाणु हथियार का उपयोग हो जाए और पूरी मानवता खतरे में पड़ जाए?


🔍 UPSC GS Mains प्रश्न अभ्यास

प्रश्न: "परमाणु हथियारों के 'न-प्रयोग' की परंपरा नैतिक प्रतिबद्धता है या सामरिक विवेक?" समकालीन उदाहरणों के साथ चर्चा करें।

उत्तर संकेत:

भूमिका:

  • हिरोशिमा-नागासाकी और हिबाकुशा का उल्लेख

मुख्य भाग:

  • नैतिकता बनाम प्रतिरोध का तर्क

  • अंतरराष्ट्रीय संधियों की सीमाएँ

  • रूस-यूक्रेन और भारत-पाक तनाव

  • टैक्टिकल परमाणु हथियारों का उभरता खतरा

  • परमाणु निरस्त्रीकरण में भारत की भूमिका

निष्कर्ष:

  • "न-प्रयोग" को अब कानूनी, नैतिक और रणनीतिक तीनों स्तरों पर सुदृढ़ करना होगा

  • नहीं तो अगली गलती संभावित नहीं, विनाशकारी हो सकती है


🧭 समापन: परमाणु हथियारों से पहले चेतावनी नहीं मिलती

80 वर्षों से परमाणु हथियारों का उपयोग युद्ध में नहीं हुआ —
लेकिन अब ऐसा लगता है कि हम भूलने लगे हैं कि वह कितना खतरनाक था

➡️ हिबाकुशा की चेतावनी केवल इतिहास नहीं, वर्तमान और भविष्य की भी जिम्मेदारी है।
हमें "न-प्रयोग" को सिर्फ नीति नहीं, मानवता की रक्षा का व्रत बनाना होगा।

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