भारतीय कृषि में महिलाएँ: अदृश्य श्रम से आर्थिक इंजन की ओर
यह विषय यूपीएससी की दृष्टि से अत्यंत प्रासंगिक है, जो जीएस पेपर I (समाज), जीएस पेपर II (शासन), जीएस पेपर III (अर्थव्यवस्था व कृषि) और निबंध पत्रों से जुड़ता है।
1. मूल विरोधाभास: "स्त्रीकरण" बिना सशक्तिकरण के
मुख्य मुद्दा यह है कि कृषि में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इस "स्त्रीकरण" ने उनके आर्थिक सशक्तिकरण को नहीं बढ़ाया है। बल्कि, यह मौजूदा असमानताओं को और मजबूत कर रहा है।
मुख्य साक्ष्य और आंकड़े (उत्तरों के लिए महत्वपूर्ण):
भागीदारी में वृद्धि: कृषि में महिलाओं का रोजगार 135% बढ़ा है। वे अब कृषि कार्यबल का 42% से अधिक हिस्सा हैं, यानी कृषि में काम करने वाली हर तीन में से दो महिलाएं हैं।
अवैतनिक श्रम का संकट: कृषि में काम करने वाली लगभग आधी महिलाएं अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक के रूप में वर्गीकृत हैं। उनकी संख्या केवल आठ वर्षों में 23.6 मिलियन से बढ़कर 59.1 मिलियन हो गई। राष्ट्रीय स्तर पर, काम करने वाली हर तीसरी महिला अवैतनिक है।
क्षेत्रीय असमानताएं: बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, 80% से अधिक महिला श्रमिक कृषि में लगी हैं, जिनमें से आधी से अधिक को कोई मजदूरी नहीं मिलती।
व्यवस्थागत बाधाएं:
पहचान का अभाव: महिलाओं को आधिकारिक तौर पर "किसान" के रूप में मान्यता नहीं दी जाती।
संपत्ति की कमी: वे केवल 13-14% जोत की मालिक हैं।
लैंगिक मजदूरी अंतर: समान काम के लिए वे पुरुषों की तुलना में 20-30% कम कमाती हैं।
सीमित पहुंच: निर्णय लेने की शक्ति, ऋण और सरकारी सहायना मुख्य रूप से पुरुषों के पास है।
व्यापक आर्थिक प्रभाव: उनकी बढ़ती भूमिका के बावजूद, राष्ट्रीय सकल मूल्य वर्धन (GVA) में कृषि का हिस्सा 15.3% (2017-18) से घटकर 14.4% (2024-25) हो गया है, जो दर्शाता है कि उनका काम कम-मूल्य वाले, कम-उत्पादकता वाले कार्यों में केंद्रित है।
2. दोहरा अवसर: व्यापार और प्रौद्योगिकी रूपी लीवर
लेख कृषि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को बदलने वाली दो शक्तिशाली ताकतों की पहचान करता है।
A. उत्प्रेरक के रूप में व्यापार समझौते (जैसे, भारत-यू.के. एफटीए):
एफटीए के तहत 95% से अधिक कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों को शुल्क-मुक्त पहुंच मिलेगी और इससे भारतीय कृषि निर्यात में 20% की वृद्धि का अनुमान है।
रणनीतिक क्षेत्र: इनमें से कई उच्च-विकास वाली निर्यात मूल्य श्रृंखलाओं (जैसे चाय, मसाले, बाजरा, डेयरी, रेडी-टू-ईट भोजन, जैविक उत्पाद) में महिला श्रमिकों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
अवसर: यदि एफटीए को लैंगिक-उद्देश्यपूर्ण प्रावधानों (प्रशिक्षण, ऋण की पहुंच, बाजार संपर्क) के साथ तैयार किया जाए, तो वे महिलाओं को मजदूरों से उद्यमियों और निर्यातकों में बदलने में सक्षम बना सकते हैं।
B. सक्षमकारी के रूप में डिजिटल प्रौद्योगिकी:
मौजूदा प्लेटफॉर्म:
ई-नाम
(ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट), मोबाइल-आधारित सलाहकार सेवाएं और आवाज-सहायित एप्लिकेशन महिलाओं को बाजारों, ज्ञान और वित्तीय सेवाओं से जोड़ सकते हैं।डिजिटल विभाजन को पाटना: सरकार की
भाषिणी
और माइक्रोसॉफ्ट केजुगलबंदी
जैसे नवाचार सूचना तक बहुभाषी, आवाज-प्रथम पहुंच प्रदान करके साक्षरता और भाषा की बाधाओं को दूर करते हैं।जमीन पर आशाजनक मॉडल:
डिजिटल सखी
(एलएंडटी फाइनेंस): सात राज्यों में ग्रामीण महिलाओं को डिजिटल और वित्तीय साक्षरता का प्रशिक्षण देती है।स्वयं संपूर्ण एफपीओ
(ओडिशा): दर्शाता है कि कैसे प्रौद्योगिकी महिला किसानों को निर्यात प्रतिस्पर्धा के अग्रिम मोर्चे पर ला सकती है।झालावाड़ी महिला किसान उत्पादक कंपनी
(राजस्थान): प्रत्यक्ष बिक्री और ब्रांडिंग के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करती है।
3. रणनीतिक राह आगे: बहु-आयामी दृष्टिकोण
नीति, आर्थिक और तकनीकी हस्तक्षेपों वाली एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है।
1. आधारभूत कानूनी और नीतिगत सुधार:
आधिकारिक मान्यता: नीतियों को महिलाओं को आधिकारिक तौर पर "किसान" या "कृषक" के रूप में मान्यता देनी चाहिए, न कि केवल "मजदूर" के रूप में।
सुरक्षित भूमि अधिकार: महिलाओं के लिए संयुक्त या व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व को बढ़ावा देना और सुगम बनाना। यह ऋण, बीमा और अन्य सरकारी लाभों तक पहुंच की आधारशिला है।
लैंगिक-संवेदी व्यापार नीति: एफटीए में सक्रिय रूप से ऐसे अध्याय या प्रावधान शामिल करें जो महिला-नेतृत्व वाले व्यवसायों और सहकारिताओं का समर्थन करें।
2. आर्थिक उन्नयन और मूल्य श्रृंखला में एकीकरण:
उच्च-मूल्य वाली गतिविधियों की ओर बढ़ावा: महिलाओं को प्राथमिक खेती से प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और निर्यात जैसे उच्च-मार्जिन वाले क्षेत्रों में जाने के लिए सक्षम करें।
विशिष्ट बाजारों का लाभ उठाना: जैविक उत्पादों, सुपरफूड्स (जैसे बाजरा) और भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग वाले उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग का लाभ उठाने के लिए महिला उत्पादकों का समर्थन करें।
मानकों के लिए सहायता: प्रीमियम निर्यात बाजारों तक पहुंचने के लिए आवश्यक गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रमाणन मानकों को पूरा करने में महिला-नेतृत्व वाले एफपीओ और एसएचजी की मदद करें।
3. प्रौद्योगिकी सक्षमता और संस्थागत सुदृढ़ीकरण:
सफल मॉडलों का विस्तार: डिजिटल सखी और स्वयं संपूर्ण एफपीओ जैसी पहलों को व्यवस्थित रूप से दोहराएं और बढ़ाएं।
सामूहिक कार्रवाई: निविष्टि खरीद, उत्पादन और विपणन में महिलाओं को सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति देने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की भूमिका मजबूत करें।
लक्षित क्षमता निर्माण: डिजिटल साक्षरता, वित्तीय प्रबंधन और उद्यमशीलता कौशल पर केंद्रित बहु-हितधारक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करें।
यूपीएससी अभ्यर्थियों के लिए मुख्य बिंदु
मुख्य परीक्षा उत्तर लेखन हेतु:
परिचय: विरोधाभास पर प्रकाश डालते हुए शुरुआत करें - कृषि में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उनके लगातार आर्थिक वंचन के साथ। तत्काल प्रभाव के लिए मुख्य आंकड़ों का उपयोग करें।
मुख्य भाग:
समस्या का विश्लेषण: संरचनात्मक बाधाओं - भूमि अधिकारों की कमी, मजदूरी अंतर, और किसान के रूप में गैर-मान्यता पर चर्चा करें।
अवसरों पर चर्चा: विस्तार से बताएं कि कैसे रणनीतिक व्यापार समझौतों (एफटीए) और समावेशी डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग लैंगिक अंतर को पाटने के लिए किया जा सकता है।
समाधान सुझाएं: नीति सुधारों, आर्थिक एकीकरण और प्रौद्योगिकी व संस्थागत सहायता को कवर करते हुए एक संतुलित, बहु-आयामी रणनीति प्रस्तुत करें। व्यावहारिक अनुप्रयोग प्रदर्शित करने के लिए भाषिणी या ओडिशा के एफपीओ जैसे विशिष्ट उदाहरण दें।
निष्कर्ष: इस बात पर जोर दें कि कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना केवल एक सामाजिक उद्देश्य नहीं है, बल्कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और भारत के $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचने की एक महत्वपूर्ण आर्थिक रणनीति है।
संभावित निबंध विषय:
"भारतीय कृषि का 'स्त्रीकरण': सशक्तिकरण का मार्ग है या असमानता का स्थायीकरण?"
"महिला किसानों का सशक्तिकरण भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को रूपांतरित करने की कुंजी है। चर्चा करें।"
"भारतीय कृषि में लैंगिक अंतराल को पाटने में प्रौद्योगिकी और व्यापार की भूमिका पर चर्चा करें।"
संभावित जीएस प्रश्न:
जीएस पेपर I: "भारत में 'कृषि के स्त्रीकरण' के निहितार्थों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।"
जीएस पेपर II: "कृषि में महिलाओं की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने में मौजूदा सरकारी योजनाओं की प्रभावकारिता का मूल्यांकन कीजिए।"
जीएस पेपर III: "मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) भारतीय कृषि में महिलाओं के आर्थिक समावेशन का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करते हैं। विश्लेषण कीजिए।"
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