प्राचीन सभ्यताएँ, उभरती बहुध्रुवीयता और ग्लोबल साउथ : भारत और ईरान की भूमिका
By Suryavanshi IAS
🔹 प्रस्तावना
वर्तमान विश्व व्यवस्था संक्रमणकाल से गुजर रही है। कभी पश्चिमी प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, विशेषकर अमेरिका के नेतृत्व वाली, अब गंभीर संकट का सामना कर रही है। अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, एकतरफा सैन्य हस्तक्षेप, व्यापार युद्ध, प्रतिबंध और वैश्विक संस्थाओं की साख का ह्रास इसका संकेत हैं।
ऐसे समय में भारत और ईरान जैसी प्राचीन सभ्यताएँ, जो शांति, आध्यात्मिकता और विविधता के सम्मान की वाहक रही हैं, नई न्यायपूर्ण व मानवीय व्यवस्था गढ़ने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
🔹 पश्चिमी प्रभुत्व का संकट
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अमेरिकी प्रभाव में गिरावट: वित्तीय प्रणाली, तकनीक, मीडिया और मानवाधिकार विमर्श पर उसका एकाधिकार टूट रहा है।
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मुख्य लक्षण:
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अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन
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एकतरफा युद्ध व हस्तक्षेप
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प्रतिबंध व व्यापार युद्ध
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पर्यावरण संकट को नजरअंदाज करना
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वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता में कमी
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🔑 UPSC प्रासंगिकता:
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GS Paper-II (IR): वैश्विक व्यवस्था, बहुध्रुवीयता, NAM, BRICS, G20 में भारत की भूमिका।
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GS Paper-I (इतिहास/संस्कृति): भारत की सभ्यतागत कूटनीति।
🔹 ग्लोबल साउथ का उभार
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दक्षिण-दक्षिण सहयोग: देश स्थानीय मॉडल अपना रहे हैं और वर्चस्व से इंकार कर रहे हैं।
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मुख्य पहलू:
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स्वदेशी विज्ञान-तकनीक
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रक्षा-सुरक्षा में आत्मनिर्भरता
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डी-डॉलराइजेशन और नए वित्तीय ढाँचे
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महत्वपूर्ण मंच: BRICS, SCO, INSTC, G77 आदि।
🔑 UPSC PYQs:
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2018 GS-II: WTO सुधारों और व्यापार युद्ध पर प्रश्न।
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2020 GS-II: भारत-ईरान संबंधों का महत्व।
🔹 भारत और ईरान की सभ्यतागत भूमिका
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साझी धरोहर:
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दोनों ने शांति, सहअस्तित्व और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को महत्व दिया।
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पराजय के बाद भी संस्कृति से विजेताओं को प्रभावित किया।
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आधुनिक इतिहास:
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भारत – स्वतंत्रता संग्राम, NAM नेतृत्व।
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ईरान – तेल का राष्ट्रीयकरण, इस्लामी क्रांति।
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आज की साझी मान्यताएँ: आध्यात्मिकता, प्रकृति का सम्मान, न्याय।
🔑 PYQ:
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2021 GS-I: “भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का समकालीन कूटनीति में महत्व बताइए।”
🔹 समकालीन आयाम
1. फ़िलिस्तीन प्रश्न
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पश्चिमी दोहरे मापदंडों का सबसे बड़ा उदाहरण।
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ईरान इसका समर्थन कर ग्लोबल साउथ के अधिकारों की रक्षा करता है।
2. भारत-ईरान सहयोग
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INSTC कॉरिडोर: यूरेशिया से भारत-अफ्रीका तक संपर्क।
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चाबहार पोर्ट: मध्य एशिया तक भारत का द्वार।
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ऊर्जा व सुरक्षा सहयोग।
3. BRICS और नई संस्थाएँ
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पश्चिमी वित्तीय संस्थाओं का विकल्प।
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डी-डॉलराइजेशन और दक्षिण-दक्षिण सहयोग का मंच।
🔹 अमेरिकी हस्तक्षेप और क्षेत्रीय अस्थिरता
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पश्चिम एशिया: इराक, सीरिया, यमन, फ़िलिस्तीन में हस्तक्षेप।
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दक्षिण एशिया: आतंकवाद को कभी बढ़ावा, कभी नियंत्रण।
🔑 PYQs:
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2022 GS-II: SCO के उद्देश्य और भारत के लिए महत्व।
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2023 GS-II: IMEC कॉरिडोर का भू-राजनीति पर प्रभाव।
🔹 आगे की राह
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दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करना।
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NAM सिद्धांतों को नए रूप में पुनर्जीवित करना।
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ऊर्जा, तकनीक और रक्षा में रणनीतिक स्वायत्तता।
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सांस्कृतिक-सभ्यतागत कूटनीति को बढ़ाना।
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क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे विकसित करना।
🔹 निष्कर्ष
विश्व अब एकध्रुवीय नहीं रहा। पश्चिम का वर्चस्व कम हो रहा है और नई शक्तियाँ उभर रही हैं। इस परिवर्तनकाल में भारत और ईरान अपनी सभ्यतागत बुद्धिमत्ता, स्वतंत्र नीति और साझी विरासत के साथ ग्लोबल साउथ का नेतृत्व कर सकते हैं।
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