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Monday, September 8, 2025

प्रश्न: बिहार की मतदाता सूची पुनरीक्षण में आधार को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

 

प्रश्न: बिहार की मतदाता सूची पुनरीक्षण में आधार को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।


📌 प्रस्तावना

भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार लोकतंत्र का मूल स्तंभ है। मतदाता सूची की शुद्धता और समावेशन लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करते हैं। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार की Special Intensive Revision (SIR) में आधार को 12वें "सूचक दस्तावेज़" के रूप में मान्यता दी। परंतु न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आधार केवल पहचान/निवास का प्रमाण होगा, नागरिकता का नहीं


📌 सकारात्मक पहलू (पक्ष में तर्क)

  1. समावेशन सुनिश्चित करना – आधार लगभग हर भारतीय के पास उपलब्ध है, जिससे हाशिये के वर्गों की मतदाता सूची में शामिल होने की संभावना बढ़ेगी।

  2. सुलभता – अन्य 11 दस्तावेज़ (पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र आदि) सभी के पास उपलब्ध नहीं होते, पर आधार सर्वाधिक प्रचलित है।

  3. तकनीकी प्रामाणिकता – UIDAI प्रणाली से ऑनलाइन सत्यापन संभव है, जिससे नकली पहचान रोकी जा सकती है।

  4. RP Act से मेल – RP Act की एक धारा पहले से आधार को निवास प्रमाण मानती है।

  5. न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका – लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा हेतु अदालत का हस्तक्षेप नागरिक अधिकारों को सुदृढ़ करता है।


📌 नकारात्मक पहलू (विपक्ष में तर्क)

  1. नागरिकता की पुष्टि नहीं – आधार भारतीय नागरिक व गैर-नागरिक दोनों को जारी हो सकता है। इससे अनधिकृत प्रवासियों के पंजीकरण का खतरा।

  2. गोपनीयता व डाटा सुरक्षा – आधार से संबंधित डाटा लीक होने पर मतदाता सूची में हेरफेर की संभावना।

  3. प्रशासनिक असमानता – न्यायालय के आदेशों के बावजूद BLOs द्वारा अस्वीकार करना कार्यान्वयन की कमजोरी दर्शाता है।

  4. ECI की चिंताएँ – आयोग का तर्क है कि केवल आधार पर भरोसा करना सूची की शुद्धता के लिए पर्याप्त नहीं है।

  5. संवैधानिक प्रश्न – आधार को चुनावी प्रक्रिया से जोड़ना कहीं न कहीं मतदान अधिकार को तकनीकी उपकरण पर निर्भर बना सकता है।


📌 समालोचनात्मक विश्लेषण

  • यह निर्णय वोटर समावेशन को बढ़ावा देता है, परंतु चुनाव की शुद्धता को चुनौती भी दे सकता है।

  • यह प्रश्न खड़ा करता है कि क्या न्यायपालिका प्रशासनिक कार्यों में अति-सक्रिय हो रही है।

  • आधार को पहचान प्रमाण तक सीमित रखना एक संतुलित दृष्टिकोण है, किंतु भविष्य में नागरिकता की पुष्टि हेतु ठोस व्यवस्थाएँ भी आवश्यक होंगी।


📌 निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वोटर समावेशन को प्राथमिकता देता है। परंतु इसके साथ ही नागरिकता की पुष्टि, डाटा सुरक्षा, और प्रशासनिक अनुपालन जैसे मुद्दों का समाधान आवश्यक है। दीर्घकालिक दृष्टि से आधार को सहायक दस्तावेज़ ही माना जाना चाहिए, न कि निर्णायक प्रमाण

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